यह उल्लेख किया जाता है कि हिंद महासागर बेसिन के अलावा, विमान टोही उड़ानें अटलांटिक, प्रशांत और ऑस्ट्रेलियाई क्षेत्र के प्रमुख चक्रवात बेसिन में सफलतापूर्वक संचालित की गई हैं। चक्रवाती तूफान के चारों ओर एक विमान द्वारा एक वास्तविक उड़ान का अध्ययन और एक तूफान की संरचना और गतिशीलता को समझने से इसके विकास और गतिशीलता के विभिन्न चरणों के दौरान और इस प्रकार काफी हद तक ट्रैक भविष्यवाणी की सटीकता में सुधार के लिए अमूल्य डेटा प्रदान किए जाते हैं। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया में किए गए अध्ययनों में दर्शाया गया है कि विमान द्वारा उत्पन्न जानकारी के रूप में 30% से ट्रैक भविष्यवाणी त्रुटियों में सुधार होता है। हाल के वर्षों में अनेक प्रयोगों के जरिए सिद्ध किया गया है कि सर्वोत्तम समय और जगह के चयन से मौसम के सही पूर्वानुमान में काफी हद द्वारा सुधार किया जा सकता है - कुशल खोजी तकनीकों का प्रयोग करने वाले विमान की मदद से चक्रवात पर्यावरण से सबसे सटीक और प्रत्यक्ष अवलोकन प्राप्त करने के लिए ये वायुमंडलीय की स्थिति पर आधारित होते हैं।
भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) द्वारा पूर्व में बादलों के सीडिंग प्रयोगों को प्रचालनात्मक कार्यक्रमों के आधार के रूप में लेकर सकारात्मक परिणाम मिले हैं। ऐसे अनेक कारक हैं जो वर्तमान परिदृश्य में इन परिणामों के उपयोग को सीमित बनाते हैं। पिछले 30 वर्षों के दौरान आईआईटीएम के प्रयोगों के बाद मानवजनित गतिविधियों तथा प्रदूषण (एरोसोल) स्तरों में वृद्धि के कारण वातावरण के घटकों में बडे बदलाव हुए हैं।
इस परिस्थिति में विभिन्न मार्गों को समझने के लिए वैज्ञानिक कारणों से प्राथमिक तौर पर एक निश्चित और प्रामाणिक निष्कर्ष की बहुत अधिक और तात्कालिक जरूरत है तथा दूसरे, इससे राज्य सरकारों और अनेक सामाजिक संगठनों को मार्गदर्शन आधारित विज्ञान प्रदान किया जाता है जो सीडिंग को सूखे की परिस्थितियों से निपटने के एक समाधान के रूप में लेते हैं। आईआईटीएम ने उक्त अध्ययनों के लिए एक विमान को किराए पर लेकर उपरोक्त संदर्भित मुद्दों को संबोधित करने के लिए राष्ट्रीय बहु वर्ष प्रयोग ''कैपीक्स'' किए हैं।
हमारे देश में अनुसंधान समुदाय द्वारा एरोसोल का नमूना लेने, बादलों के गुणों के मापन, बादलों की भौतिकी, सीटीसीजेड, वातावरण के रसायन आदि के संदर्भ में दीर्घ अवधि मापनों की बहुत अधिक जरूरत महसूस की गई है ताकि खास तौर पर मानसून परिवेश में बारिश कराने वाली प्रक्रियाओं के उपचार से सुधार लाकर सभी संगत वैज्ञानिक मुद्दों को संबोधित किया जा सके तथा अन्य बादल – एरोसोल – रेडिएटिव फीडबैक प्रक्रियाओं को समझा जाए, जो जलवायु परिवर्तन और भारत में आने वाले समय में होने वाले बदलावों से संबंध रखती हैं।
भारत में वायु जनित अनुसंधान सुविधाओं की स्थापना के लिए डीपीआर को अंतिम रूप देने के लिए राष्ट्रीय समिति गठित की गई है।
(करोड़ रु. में)
योजना का नाम | 2012-13 | 2013-14 | 2014-15 | 2015-16 | 2016-17 | कुल |
---|---|---|---|---|---|---|
वायु जनित प्लेटफॉर्म | 70 | 200 | 250 | 80 | 100 | 700 |
Last Updated On 09/07/2018 - 15:26 |