हमारा देश दक्षिण पश्चिम मानसून ऋतु के चार महीनों (जून से सितम्बर) की अल्प अवधि के दौरान वार्षिक वर्षा की 80% से अधिक मात्रा प्राप्त करता है। मानसून ऋतु के दौरान वर्षा का आगमन, वापसी तथा वर्षा की मात्रा देश के जल संसाधनों, ऊर्जा उत्पादन, कृषि, अर्थव्यवस्था तथा पारिप्रणालियों पर अत्याधिक प्रभाव डालते हैं। भारतीय मानसून की ऋतुकालिक वर्षा परिवर्तनीयता के पूर्वानुमान की उन्नत क्षमता देश के अनेक क्षेत्रों के लिए अत्याधिक महत्वपूर्ण रहेंगी। अभी भी मध्यम अवधि (दो सप्ताह के समय पैमाने तक) में पूर्वानुमानों की परिशुद्धता एक चुनौती है जिसमें प्रारंभ से अंत तक पूर्वानुमान विश्लेषण प्रणाली चलाना अपरिहार्य है। चूंकि यह एक प्रारंभिक मूल्य समस्या है, इसलिए यह प्रासंगिक है कि प्रारंभिक दशा अधिक यथार्थवादी हो। इसमें एक सशक्त वैश्विक सम्मिश्रण योजना शामिल है जो कि विभिन्न प्लेटफॉर्मों (भूमि, महासागर तथा अन्तरिक्ष) आधारित प्रेक्षणों का सर्वाधिक इष्टतम तरीके से उपयोग करती है। भौतिक प्रक्रियाओं को उनकी पेचीदा अरैखिक अन्त: क्रियाओं के साथ, उन्नत पैरामीटरीकरण योजनाओं के जरिए अधिक यथार्थवादी प्रतिनिधित्व हेतु कौशलपूर्ण पूर्वानुमान प्राप्त करने के लिए शामिल करने की आवश्यकता है। इसमें क्लाउड रिजॉल्विंग प्रक्रियाएं, धूल तथा ऐरोसोलों का समावेश, भूमि सतह प्रक्रियाओं इत्यादि का यथार्थवादी प्रतिनिधित्व शामिल है। इसके अतिरिक्त, दो सप्ताह के पूर्वानुमानों हेतु, अध्ययनों ने वायुमण्डल महासागर युग्मन के महत्व को दर्शाया है जिसकी परिणति पूर्वानुमानों के कौशल में वृद्धि के रूप में होती है। अनिश्चितता की मात्रा का अनुमान लगाना भी महत्वपूर्ण है जो कि विश्लेषणों तथा पूर्वानुमानों के साथ सम्बद्ध है। यह एन्सेम्बल पूर्वानुमान मॉडल, जो कि विक्षुब्ध प्रारंभिक दशाओं का उपयोग करता है अथवा अल्प तथा मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान हेतु मॉडल में स्टॉकेस्टिक भौतिकी का उपयोग करता है, के उपयोग के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। वर्तमान में, भारत में एंसेम्बल पूर्वानुमान प्रणाली को प्रचालनात्मक रूप से उपयोग नहीं किया जा रहा है। इसलिए, एंसेम्बल पूर्वानुमान प्रणाली के कार्यान्वयन पर कार्य प्रारंभ करना अत्यावश्यक है।
Last Updated On 05/26/2015 - 10:39 |