उष्ण कटिबंधी समुद्रों में समृद्ध जैव संसाधन मानव गतिविधि से संबंधित सर्वाधिक मूल्यवान पारिस्थितिक तंत्र हैं। मानवीय हस्तक्षेप जैसे अभियांत्रिकी रूपांतरण, हाइड्रोलिक नियंत्रण, औद्योगिक प्रतिष्ठान आदि से तटीय पारिस्थितिकी में प्रगामी रूपांतरण होते हैं। अतिरिक्त पोषक तत्वों की लोडिंग तटीय जल में एक गंभीर पर्यावरण मुद्दा बन गई है जिससे युट्रोफिकेशन और असामान्यत वनस्पति प्लावक फलते फूलते हैं। तटीय जल में पोषक तत्वों का वितरण एक जटिल भौतिक – रासायनिक – जैविक अंत:क्रिया से नियंत्रित होता है जो निवेश, ताप अंतरण / फैलाव और निर्यात से जुड़ा है। चूंकि ये जटिल हैं और अरेखीय रूप से संयोजित हैं, अत: यूट्रोफिकेशन पर अध्ययन आम तौर पर पानी की गुणवत्ता के मॉडलों पर निर्भर करता है जिसमें अकार्बनिक और कार्बनिक पदार्थ का रूपांतरण और उपयोगिता शामिल है। हाइपॉक्सिया के बार बार होने से मछलियों के उत्पादन में उल्लेखनीय कमी आती है, शैवाल विषालु हो जाते हैं और जैविक विविधता की हानि होती है। सभी स्रोतों और जैव भू रसायन प्रक्रियाओं की मात्रा ज्ञात करना जैसे जैव रसायनिक प्रक्रम और उष्ण कटिबंधी स्तर के संबंध में गणितीय मॉडलों का उपयोग करने से प्राथमिक और द्वितीयक उत्पादकता के पूर्वानमान में बहुत मदद मिलती है। इस अध्ययन से इन तटीय क्षेत्रों की वर्तमान स्थिति और प्रक्षेपित मांगों को एक नया रूप देने के लिए पर्यावरण प्रबंधन योजना की खोज और सूत्रण करने की उम्मीद है। वर्तमान प्रयास भारत के दक्षिण पश्चिमी (एसडब्ल्यू) तटीय जल के लिए एक पारिस्थितिक मॉडल के माध्यम से प्राथमिक और द्वितीयक उत्पादन के अनुमान का प्रयास है।
इसके अलावा जलवायु परिवर्तन संबंधी प्रयास जैसे एसएसटी से जीवों की चयापचय प्रक्रियाओं पर असर पड़ता है जो उत्पादन और जैव विविधता की वार्षिक दर में झलकेगा।
उत्पादकता के संदर्भों में पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को समझने से संभावित है कि भविष्य में संसाधनों की गिरावट की रोकथाम के लिए आवश्यक उपायों की योजना अत्यंत अनिवार्य है। आज इस जरूरत को पूरा करने के लिए उपलब्ध सर्वाधिक भरोसेमंद साधनों में से एक पारिस्थितिकी तंत्र मॉडल है जो पारिस्थितिकी तंत्र के घटकों की गतिशीलता, उनके आपसी संबंधों को समझता है और इसमें एक ट्रॉफिक स्तर से ऊर्जा का अंतरण दूसरे स्तर तक होता है। इन साधनों के उपयोग से निश्चित रूप से भारत के दक्षिण पश्चिमी तट के तटीय जल की उत्पादकता में गिरावट आने के कारणों को समझने में सहायता मिलेगी।
उपयुक्त उद्देश्यों को पूरा करने के लिए निम्नलिखित अध्ययनों को प्रस्तावित किया गया है
प्रस्तावित गतिविधि को इकमाम द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा।
भारत के दक्षिण पश्चिमी तट के लिए एक पारिस्थितिकी मॉडल बदलती पर्यावरण परिस्थितियों के तहत उत्पादकता के बदलाव के परिदृश्य प्रदान करने में उपयोगी सिद्ध होगा जिससे अनुकूलतम उत्पादकता सुनिश्चित करने के उपाय किए जा सकेंगे।