भारत ने वर्ष 2007 में आर्कटिक में अपने वैश्विक प्रयास तब प्रारंभ किए जब पांच वैज्ञानिकों की एक टीम ने आर्कटिक सूक्ष्म जीव विज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान और भूविज्ञान के क्षेत्र में अध्ययन आरंभ करने के लिए नि एलिजुंड स्थित अंतरराष्ट्रीय आर्कटिक अनुसंधान सुविधाओं का दौरा किया था। इस प्रारंभिक चरण की सफलता के बाद, मंत्रालय द्वारा आर्कटिक में ध्रुवीय जीव विज्ञान, हिमनद विज्ञान और पृथ्वी और वायुमंडलीय विज्ञान के अग्रणी क्षेत्रों में नियमित वैज्ञानिक कार्यकलापों वाला एक दीर्घ अवधि कार्यक्रम शुरू किया गया। अब तक, 18 राष्ट्रीय संस्थानों, संगठनों और विश्वविद्यालयों के 57 वैज्ञानिकों ने भारतीय आर्कटिक कार्यक्रम में भाग लिया है, जो मंत्रालय की ओर से एनसीएओआर द्वारा समन्वित और कार्यान्वित किया जा रहा है। नि-एलिजुंड में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान के केन्द्रित क्षेत्र आर्कटिक क्षेत्र के लिए विशेष प्रासंगिकता के ध्रुवीय विज्ञान के प्रमुख क्षेत्रों में से कुछ तक ही सीमित हैं, जैसे हिमनद विज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान, जीव विज्ञान और जलवायु परिवर्तन। आर्कटिक क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान गतिवधियों की एक व्यापक दीर्घ अवधि वैज्ञानिक योजना भी विकसित की गई है। भारतीय गतिविधियों को सुविधा प्रदान करने के लिए, आर्कटिक में भारत के अनुसंधान केन्द्र के रूप में कार्य करने के लिए नि-एलिजुंड में स्टेशन भवन किराए पर लिया गया है। भारत नि-एलिजुंड विज्ञान प्रबंधक समिति (एनवाईएसएमएसी) का सदस्य है, जो नि-एलिजुंड में वैज्ञानिक परियोजनाओं पर सभी सदस्य राष्ट्रों के समन्वय और परामर्श के लिए जिम्मेदार शीर्ष निकाय है। भारत को 2011 से अंतरराष्ट्रीय आर्कटिक विज्ञान समिति (आईएएससी) में प्रेक्षक का दर्जा भी प्राप्त है।
क) उद्देश्य:
- आर्कटिक में वायुमंडलीय विज्ञान, जलवायु परिवर्तन, भूविज्ञान और हिमनद विज्ञान और ध्रुवीय जीव विज्ञान के क्षेत्रों में वैज्ञानिक कार्यक्रमों को जारी रखना।
- ध्रुवीय विज्ञान के प्रमुख क्षेत्रों में से कुछ में वैज्ञानिक अनुसंधान की शुरूआत के माध्यम से आर्कटिक में भारत की एक प्रमुख और निरंतर उपस्थिति सुनिश्चित करना।
ख) प्रतिभागी संस्थाएं :
राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केन्द्र, गोवा
ग) कार्यान्वयन योजना :
मंत्रालय की ओर से आर्कटिक में भारतीय वैज्ञानिक प्रयासों से संबंधित वैज्ञानिक और संभारतंत्र पहलुओं से जुड़े सभी पहलुओं पर योजना बनाने, समन्वय और कार्यान्वयन किया जाएगा।
तथापि, कार्य कार्यक्रम के विज्ञान घटक ध्रुवीय क्षेत्र में सतत रुचि रखने वाले सभी प्रमुख राष्ट्रीय संस्थानों, प्रयोगशालाओं और विश्वविद्यालयों से वैज्ञानिकों को सम्मिलित करते हुए एक बहु संस्थागत राष्ट्रीय प्रयास होगा।
अभियान को विज्ञान के उद्देश्यों की आवश्यकता के आधार पर मार्च से सितम्बर तक चरणबद्ध तरीके से शुरू किया जाएगा।
घ) वितरण योग्य:
आर्कटिक में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तावित वैज्ञानिक अध्ययन से जलवायु परिवर्तन परिघटना को समझने में वैश्विक समुदाय के जारी प्रयासों में काफी योगदान मिलेगा। इसके अलावा, अध्ययन पृथ्वी विज्ञान, जीव विज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान और जलवायु विज्ञान जैसे विविध लेकिन परस्पर संबंधित क्षेत्रों में प्रचुर जानकारी उपलब्ध करवाएंगे।
वैज्ञानिक कार्यक्रम की सफलता, वैश्विक मुद्दों को समझने के अलावा, अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों में भी योगदान देने तथा आईएएससी में प्रवेश प्राप्त करने में भारत की मदद करेगी।
ङ) बजट की आवश्यकता : 50 करोड़ रु.
(करोड़ रु. में)
योजना का नाम | 2012-13 | 2013-14 | 2014-15 | 2015-16 | 2016-17 | कुल |
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आर्कटिक अभियान | 4.00 | 20.00 | 19.00 | 3.00 | 4.00 | 50.00 |