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अक्रॉस में निम्नलिखित चार उप-स्‍कीमें हैं-

  1. मानसून संवहन, बादल और जलवायु परिवर्तन (MC4)
  2. उच्च निष्‍पादन कंप्यूटिंग प्रणाली (एचपीसीएस)
  3. मानसून मिशन (MM-II)
  4. वायुमंडलीय प्रेक्षण नेटवर्क
  5. मौसम और जलवायु सेवाएं
  6. पूर्वानुमान प्रणाली का उन्नयन
  7. पोलरिमेट्रिक डॉप्लर मौसम रडार (डीडब्ल्यूआर) का संचालन

उप-स्‍कीमों का विवरण नीचे दिया गया है-

मानसून संवहन, बादल और जलवायु परिवर्तन (MC4)

बादल मानसून संवहन और वर्षा का एक अभिन्न अंग हैं। जलवायु मॉडल में प्रेक्षणों की कमी और बादल प्रक्रियाओं के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के कारण संवहन और बादल प्रक्रियाओं के लिए मानसून की गतिशीलता के युग्मन की वर्तमान समझ सीमित है।

MC4 योजना की परिकल्पना मॉनसूनी वर्षा में परिवर्तनों और गर्म वातावरण में इनके प्रभावों की पूर्वांनुमान समझ बढ़ाने के लिए प्रेक्षणात्‍मक डेटाबेस और जलवायु मॉडलों में सुधार के लिए की गई थी। MC4 का व्यापक लक्ष्य एक बदलती जलवायु में मानसून की गतिशीलता, बादल, एरोसोल, वर्षा और जल चक्र के बीच परस्‍पर क्रियाओं का बेहतर वर्णन और मात्रा निर्धारित करना है। यह जलवायु मॉडलिंग और प्रेक्षणात्‍मक अध्ययनों द्वारा प्राप्‍त किया जाएगा तथा दक्षिण एशिया पर जलवायु विविधताओं और क्षेत्रीय प्रभावों का बेहतर पूर्वानुमान करने में सक्षम बनाएगा।

MC4. के उद्देश्य

  1. वैश्विक और क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तनशीलता और परिवर्तन की मॉडलिंग करना तथा पृथ्‍वी प्रणाली मॉडलों और उच्च-विभेदन जलवायु मॉडलों का प्रयोग करके प्रभाव का आकलन करना।
  2. मॉनसून बादल गतिकी और सूक्ष्‍म भोतिकी पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्रेक्षण कार्यक्रम, संख्यात्मक सिमुलेशन और प्रयोगशाला जांच करना।
  3. ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) की सांद्रता और अभिवाह, रासायनिक ट्रेस गैसों और मौसम विज्ञान संबंधी प्राचलों के भूमि आधारितमापन करना।
  4. कई हज़ार वर्ष पहले तक फैले एशियाई मानसून में पिछले परिवर्तनों का पुनर्निर्माण करना।
  5. आउटरीच, प्रशिक्षण और विश्वसनीय जलवायु सूचना का प्रसारण।
  6. वैश्विक और क्षेत्रीय जलवायु मॉडलिंग और प्रेक्षणों में आंतरिक क्षमता का निर्माण करना।
  7. मध्य भारत में एक वायुमंडलीय अनुसंधान परीक्षण केंद्र (एआरटी-सीआई) स्‍थापित करना।
  8. एक राष्ट्रीय जलवायु निर्देश नेटवर्क (एनसीआरएन) स्थापित करना।

 

इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, MC4 के निम्नलिखित चार उप-कार्यक्रम हैं:

वर्चुअल वाटर सेंटर सहित जलवायु परिवर्तन अनुसंधान केंद्र (सीसीसीआर)

उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन की समझ में सुधार लाने और वैश्विक जलवायु परिवर्तन के लिए क्षेत्रीय जलवायु प्रतिक्रियाओं के बेहतर आकलनों के लिए भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), पुणे में एक अत्याधुनिक सीसीसीआर स्थापित किया गया।

सीसीसीआर की उपलब्धियां

  1. आईआईटीएम पृथ्‍वी प्रणाली मॉडल (IITM-ESM) का उपयोग करते हुए, भारत से पहली बार CMIP6 (कप्‍लड मॉडल अंतर तुलना परियोजना) प्रयोगों और IPCC (जलवायु परिवर्तन संबंधी अंतर सरकारी पैनल) की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट (AR6) में योगदान दिया। भारत के पहले पृथ्‍वी प्रणाली मॉडल संस्करण-2 (IITM-ESMv2) पर पूर्व-औद्योगिक और वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप बहु-शताब्दी सिमुलेशन ने समय-माध्य वायुमंडल और समुद्री बड़े पैमाने पर परिसंचरण के प्रमुख पहलुओं को अभिग्रहित करने में महत्वपूर्ण सुधार दर्शाया है।
  2. CMIP6 के अनेकDECK (क्लिमा का निदान, मूल्‍यांकन और अभिलक्षणन) सिमुलेशनों को पूरा किया। इनमें 300-वर्षीय स्पिन-अप और 500-वर्षीय पूर्व-औद्योगिक नियंत्रण, हाल का ऐतिहासिक अतीत (~ 150 वर्ष), AMIP (वायुमंडलीय मॉडल अंतर तुलना परियोजना)और क्षणिक कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और अचानक CO2 वृद्धि शामिल हैं।
  3. समन्वित क्षेत्रीय डाउनस्‍केलिंग प्रयोग(CORDEX) दक्षिण एशिया गतिविधि के भाग के रूप में50 किलोमीटर विभेदन पर एक क्षेत्रीय जलवायु मॉडल(सैद्धांतिक भौतिकी के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र: ICTP-RegCM4) का उपयोग करके सीसीसीआर, आईआईटीएम में आईपीसीसीपरिदृश्यों (रिप्रजेंटेटिव कंसंट्रेशन पाथवे: RCP4.5 और RCP8.5) के लिए 2100 तक क्षेत्रीय जलवायु के उच्च-विभेदन डाउनस्केल्ड अनुमानों का एक समूह तैयार किया।
  4. आगामी वर्षों (2020-24) में डाउनस्‍केलिंग अध्ययनों के लिए IITM-ESM के वायुमंडलीय-एकमात्र संघटक के 27 किमी के वैश्विक मॉडल का विकास और परीक्षण किया।

2. उष्णकटिबंधीय बादलों की भौतिकी और गतिकी (पीडीटीसी)

पीडीटीसी का उद्देश्य उष्णकटिबंधीय बादलों और पर्यावरण के साथ उनकी परस्‍पर क्रिया की समझ को बढ़ाना है। यह मानसून के बेहतर पूर्वानुमान के लिए और वर्षा कुशलता बढ़ाने के लिए क्लाउड सीडिंग प्रयोगों हेतु वैज्ञानिक औचित्‍य स्थापित करने के लिए आवश्यक है। इसकी निम्नलिखित चार उप-परियोजनाएं हैं:

  1. बादल और एरोसोल परस्‍पर क्रिया तथा वर्षा वृद्धि प्रयोग (CAIPEEX)
  2. महाराष्ट्र में हाई एल्टीट्यूड क्लाउड फिजिक्स लेबोरेटरी (एचएसीपीएल)
  3. गर्ज के साथ तूफान गतिकी
  4. रडार और उपग्रह मौसम विज्ञान

पीडीटीसी की उपलब्धियां

  1. भौतिक और सांख्यिकीय मूल्यांकन के साथ तीन वर्षों का क्लाउड सीडिंग अनुसंधान कार्यक्रम लागू किया। क्लाउड सीडिंग के लिए प्रोटोकॉल तैयार करने के लिए कुल 234 यादृच्छिक नमूने एकत्र किए गए थे।
  2. सीडेड और अनसीडिड बादलों के सूक्ष्म भौतिक परिवर्तनों के साथ वायुवाहित प्रेक्षण आयोजित किए।
  3. पश्चिमी घाट के वर्षा छाया क्षेत्र में बादलों, मौसम परिवर्तन अनुसंधान के लिए वर्षा हेतु एक प्रेक्षण केन्‍द्र स्‍थापित किया। यह निम्नलिखित चार सुविधाओं के साथ किया गया था।
    1. बादल अध्‍ययन, एरोसोल, क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लिअस (सीसीएन), आइस न्यूक्लिएटिंग पार्टिकल (आईएनपी) बाउंड्री लेयर फ्लक्स मापनआदि के लिए सी-बैंड रडार, माइक्रोवेव रेडियोमीटर, विंड प्रोफाइलर, सीलोमीटर और रेडियोसॉडें सहित प्रयोगशाला।
    2. महाराष्ट्र के सोलापुर में सीडिंग मूल्यांकन और वर्षा जलवायु विज्ञान के लिए इस क्षेत्र में 120 से अधिक वर्षामापियों कावर्षामापी नेटवर्क।
    3. तुलजापुर, महाराष्ट्र में सी-बैंड रडार के साथ कोलोकेशन में बाउंड्री लेयर और क्लाउड लेयर का डायनेमिक और थर्मोडायनामिक मापन।
    4. ऑपरेशनल सीडिंग के लिए निर्णय लेने और मूल्यांकन में सहायता के लिए बादल और वर्षा मूल्यांकन के लिए संख्यात्मक मॉडलिंग।
  4. अनेक राज्यों में स्थापित लगभग 75 सेंसरों के साथ भारत में एक अत्याधुनिक आकाशीय बिजली अवस्‍थि‍ति नेटवर्क की स्थापना की। सभी सेंसरों को आईआईटीएम में केंद्रीय प्रोसेसर के साथ एकीकृत हैं। भविष्य में कुछ और सेंसर जोडकर इस नेटवर्क का और विस्तार किया जाएगा।
  5. सीसीएन सक्रियण प्रक्रिया की समझ में सुधार लाने के लिए एरोसोल रसायन विज्ञान, एरोसोल आद्रर्ता ग्राही विज्ञानऔर वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) के संवर्धित माप।
  6. मिश्रित-चरण बादल स्थितियों में परिवर्तनशीलता को समझने के लिए आईएनपी प्रयोग आयोजित किए। आइस न्यूक्लिएशन पैरामीटराइजेशन स्कीम और परीक्षण विकसित करने के लिए डेटा सेट का उपयोग किया जा रहा है।
  7. एरोसोल, बादल और वर्षा की परस्‍पर अंतःक्रियाओं और पर्वतीय वर्षा प्रक्रियाओं को समझने के लिए इन का निरंतर मापन जारी रखा।
  8. पर्वतीय बादल और वर्षा की प्रक्रियाओं को समझने के लिए मंधारदेवी, महाराष्ट्र (2012 से वर्षा एक्स-बैंड और 2014 से क्लाउड का-बैंड) में रडार सुविधाएं स्थापित की।
  9. मौसम पूर्वानुमान मॉडल में आइस माइक्रोफिजिक्स पैरामीटराइजेशन और परीक्षण विकसित करने के लिए आइस न्यूक्लिएशन मापनों का प्रयोग किया।
  10. अंटार्कटिका में भारतीय केन्‍द्र, भारती और एसजीयू विश्वविद्यालय कोल्हापुर, महाराष्ट्र में एक वायुमंडलीय विद्युत वेधशाला (एईओ) की स्थापना की।
  11. वर्ष 2012 से लगातार एचएसीपीएल, महाबलेश्वर, महाराष्ट्र में एरोसोल, विकिरण, वर्षा और बादल सूक्ष्‍म भोतिकी का मापन किया।
  12. गौण कार्बनिक एरोसोल तथा सीसीएन और बर्फ नाभिक की सक्रियण प्रक्रियाओं पर उनकी भूमिका को समझने के लिए एचएसीपीएल में एक उच्च-संवेदनशीलता प्रोटॉन ट्रांसफर रिएक्शन मास स्पेक्ट्रोमीटर का उपयोग करके वीओसी के मापन कार्यान्वित किए।
  13. सीसीएन क्लोजर स्टडीज और सीसीएन पैरामीटराइजेशन के लिए विस्‍तारित आर्द्रताग्राही मापन।
  14. क्‍लाउड सीडिंग पर राज्यों को तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान किया।
  15. वॉल जेट्स और शीयर फ्लोज का अध्ययन करने के लिए पार्टिकल इमेज वेलोसिमेट्री (PIV)प्रणालियों और हॉट वायर एनीमोमेट्री के साथ एक फ्लूइड डायनेमिक्स प्रयोगशाला की स्थापना की।
  16. 'दामिनी-लाइटनिंग अलर्ट' नाम से एक मोबाइल अनुप्रयोग विकसित किया।
  17. कुंभ मेले के लिए मोबाइल अनुप्रयोग आधारित मौसम विज्ञान प्रसारण प्रणाली विकसित की।
  18. मुंबई महानगरीय क्षेत्र में एक वर्षामापी नेटवर्क की स्थापना की तथा जनता और पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय के संस्थानों के लिए बाढ़ चेतावनी और पूर्वानुमान सत्यापन प्रयोगों के विकास के लिए सूचना प्रसारित करने हेतु वेब-आधारित डेटा पोर्टल और मोबाइल एप्‍लीकेशन विकसित किया।
  19. मुंबई महानगरीय क्षेत्र में 40 एआरजी का मेसो नेटवर्क स्थापित किया।
  20. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) और बृहन्मुंबई नगर निगम (एमसीजीएम) से एक वेब पोर्टल और मोबाइल अनुप्रयोग में वर्षा डेटा एकत्र किया।
  21. बाढ़ चेतावनी प्रणालियां विकसित करने और पूर्वानुमान सत्यापन प्रयोगों के लिए राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (एनसीसीआर), चेन्नई और राष्‍ट्रीय मध्‍यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केन्‍द्र (एनसीएमआरडब्ल्यूएफ), नोएडा को ~ 100 केन्‍द्रों से वर्षा का डेटा प्रदान किया।
  22. शीत ऋतुओं के मौसम में लगातार इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, नई दिल्ली में शीतकालीन धुंध क्षेत्र अभियान चलाया गया। यह सतह सूक्ष्म मौसम विज्ञान, विकिरण संतुलन, प्रक्षोभ, सतह परत की ऊष्‍मागतिक संरचना, धुंध की बूंदोंऔर एरोसोल सूक्ष्‍म भोतिकी, धुंध जल रसायन शास्त्र को मापकर उन पर्यावरणीय स्थितियों का वर्णन करने के लिए किया गया था जिसमें धुंध विकसित होती है।
  23. आईजीआई हवाई अड्डा दिल्ली पर कोहरे संबंधी अनुसंधान के लिए एक प्रेक्षणात्‍मक सुविधा की स्थापना की।
  24. आईजीआई हवाई अड्डा, नई दिल्ली पर एक प्रचालनात्‍मक कोहरा पूर्वानुमान प्रणाली विकसित की।
  25. मुख्‍य मानसून क्षेत्र में वायुमंडलीय अनुसंधान परीक्षण पटल की स्थापना के लिए मध्य प्रदेश सरकार से सीहोर में 100 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया। वायुमंडलीय अनुसंधान परीक्षण केंद्र के बुनियादी ढांचे का विकास शुरू हो गया है।

3. राष्ट्रीय जलवायु निर्देश नेटवर्क (एनसीआरएन) के लिए वायुमंडलीय अनुसंधान परीक्षण केंद्र (एआरटी)

प्रक्रिया अध्ययन और राष्ट्रीय जलवायु निर्देश नेटवर्क (एनसीआरएन) के लिए वायुमंडलीय अनुसंधान परीक्षण केंद्र (एआरटी) एआरटी कार्यक्रम एक अत्यधिक केंद्रित प्रेक्षणात्‍मक और विश्लेषणात्मक अनुसंधान प्रयास है जो विभिन्न वायुमंडलीय प्रक्रियाओं, विशेष रूप से बादल, भूमि-वायुमंडल परस्‍पर क्रियाओं और विकिरण प्रक्रियाओं को समझने के लिए वायुमंडलीय मॉडलों में उपयोग के लिए इन प्रक्रियाओं के पैरामीटरों का परीक्षण करते हुए उन्नत मापन प्रणालियों से एकत्रित प्रेक्षणों का उपयोग करेगा।

पहले चरण में, संवहन, भूमि-वायुमंडल परस्‍पर क्रियाओं और वर्षा प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए मध्य भारत में एक एआरटी स्थापित किया जाएगा। यह संभावना है कि यह जलवायु विज्ञान के रोचक और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में परीक्षण किए गए अन्य अनुसंधान परीक्षण केंद्र कार्यक्रमों के लिए एक ठोस आधार प्रदान करेगा। दूसरे चरण में, गर्ज के साथ तूफान की प्रचंड प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए देश के पूर्वोत्तर/पूर्वी भाग में एआरटी की स्थापना की जानी है।

एनसीआरएन में देश के अनेक भागों में चालू किए गए ~ 25 जलवायु निर्देश केन्‍द्रों का एक नेटवर्क शामिल होगा, जो दीर्घकालिक, सटीक और निष्पक्ष प्रेक्षण प्रदान करने के लिए सुसज्जित होगा। ऐसे प्रेक्षण एकीकृत पृथ्वी प्रणाली की स्थिति, इसके इतिहास और इसकी भविष्य में परिवर्तनशीलता और परिवर्तन को परिभाषित करने के लिए आवश्यक हैं। मौसम पूर्वानुमान, जल विज्ञान और कृषि-मौसम विज्ञान जैसे रीयल टाइम अनुप्रयोगों के लिए सतही जलवायु परिवर्तन के अधिकांश ऐतिहासिक स्‍वस्‍थाने प्रेक्षण किए गए हैं। प्रेक्षण, इंस्ट्रूमेंटेशन और ऑपरेटरों के समय में परिवर्तन भी अनिश्चितता में योगदान देते हैं। ऐतिहासिक रूप से, दस्‍तावेज के रूप में न रखे गए या अपर्याप्त मेटाडेटा, जो मौसम विज्ञान संबंधी मापनों में परिवर्तन का वर्णन करते है,वह सब बहुत सामान्य रहा है। एनसीआरएन सटीक और विश्वसनीय जमीनी सत्‍य सत्यापनों का उपयोग करके ईएसएमएस से जलवायु अनुमानों की पुष्‍टि करना संभव बनाएगा।

एआरटी और एनसीआरएन की उपलब्धियां

  1. एक एआरटी स्थापित करने के लिए सिल्खेड़ा, तहसील श्यामपुर, सीहोर, मध्य प्रदेश (एक मुख्य मानसून क्षेत्र) में 100 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया। भौतिक और उपकरण के बुनियादी ढांचे की योजना और विकास का कार्य प्रगति पर है।
  2. जलवायु निर्देश केन्‍द्रों की स्थापना के लिए स्थल चयन का कार्य प्रगति पर है।

4. महानगरीय वायु गुणवत्ता और मौसम सेवा (एमएक्‍यूडब्‍ल्‍यूएस)

महानगरीय वायु गुणवत्ता और मौसम सेवा दिल्ली की वायु गुणवत्ता की लगभग चेतावनी प्रणाली है। इसे 15 अक्टूबर 2018 को लॉन्च किया गया था और इसे नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च (NCAR), यूएसए के सहयोग से विकसित किया गया था। यह प्रणाली केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC)तथा वायु गुणवत्ता एवं मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान प्रणाली (SAFAR) द्वारा चलाए जा रहे 36 निगरानी केन्‍द्रों के डेटा का समावेश करती है। यह प्रणाली 1 से 3 दिनों के लीड टाइम के साथ लगभग रियल-टाइम में वायु गुणवत्ता और इसके पूर्वानुमान के संबंध में स्थान-विशिष्ट जानकारी प्रदान करती है। उत्तर पश्चिम भारत में पराली जलाने या धूल भरी आंधियों के साथ-साथ व्‍याप्‍त मौसम विज्ञान संबंधी कारकों के संबंध में उपग्रहों के डेटा से गतिशील रसायन विज्ञान परिवहन मॉडल की प्रारंभिक स्थितियों में सुधार करने में मदद मिलती है। यह वायु-गुणवत्ता के सटीक पूर्वानुमान को सक्षम बनाता है, जो शमन रणनीतियों की योजना बनाने में सहायता करता है। एमएक्यूडब्ल्यूएस के वैज्ञानिक परिणाम से एक श्रेणीबद्ध प्रतिक्रिया कार्य योजना पहले से ही लागू की जा सकेगी। इस तरह के उपागम से सार्वजनिक स्वास्थ्य पर केंद्रित मौसम की जानकारी और स्वच्छ हवा पर अधिक लक्षित और लागत कुशल कार्रवाई की जा सकेगी।

उपलब्धियां

  1. दिल्ली सहित उत्तर पश्चिम भारत में चरम घटनाओं के पूर्वानुमान के लिए बड़े पैमाने पर धूल भरी आंधी और परिवहन मार्गों के लिए विभिन्न धूल स्‍कीमों के साथ फाइन डस्ट मॉडल का एक उन्नत संस्करण विकसित किया। SAFAR के साथ इसका विस्तार किया।
  2. भारत के प्रत्येक राज्य में कणिका पदार्थ प्रदूषण तथा बीमारी के भार और जीवन प्रत्याशा पर उनके प्रभावों को समझने के लिए स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव का पहला स्वदेशी प्रभाव अध्ययन।
  3. 2018 के लिए दिल्ली की पहली उच्च- विभेदन उत्सर्जन सूची तैयार की और इसमें विभिन्न स्रोतों के सापेक्ष भाग की पहचान की।
  4. जमीनी वास्तविक मापनों के साथ तीन उपग्रह डेटासेटों (इनसैट-3डी, इन्सैट-3डीआर और मॉडिस डेटा) को समन्वित करके उत्तर भारतीय राज्यों पंजाब और हरियाणा के खरीफ कृषि अवशेषों को जलाने की एक गतिशील ग्रिड युक्‍त उत्सर्जन सूची विकसित की। दिल्ली की वायु गुणवत्ता में पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के योगदान को निर्धारित किया।
  5. 2017 में दिल्ली के लंबे समय तक वायु प्रदूषण आपातकाल और कोहरे के साथ इसके अनुभवजन्य संबंधों को समझनें के लिए एक तंत्र विकसित किया।
  6. वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान के लिए बहुभाषा और आवाज-सक्षम विशेषताओं के साथ सफर-एयर मोबाइल एप्लिकेशन का उन्नत संस्करण जारी किया गया।

उच्च निष्‍पादन कंप्यूटिंग प्रणाली (एचपीसीएस)

पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय के पास देश को मानसून और अन्य मौसम और जलवायु पैरामीटरों, समुद्र की स्थिति, भूकंप और सूनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं तथा पृथ्वी प्रणाली से संबंधित अन्य घटनाओं के पूर्वानुमान की सर्वोत्तम संभव सेवाएं प्रदान करने के लिए अधिदेश है। इन पूर्वानुमानों में सुधार करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि इसके लिए पूरे विश्व में अत्यधिक उच्च स्थानिक विभेदन पर जटिल गणितीय समीकरणों को हल करने की आवश्यकता होती है। इन समीकरणों को हल करने के लिए मॉडलों को उच्च-प्रदर्शन कम्प्यूटेशनल संसाधनों की आवश्यकता होती है, जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग एल्गोरिदमों की सहायता से विशाल समानांतर कंप्यूटिंग आर्किटेक्चर वाले आधुनिक सुपर कंप्यूटर शामिल हैं।

2018 में चालू किए गए 6.8 पेटाफ्लॉप्स (पीएफ) के मौजूदा एचपीसीएस संसाधनों के परिणामस्वरूप उच्च-विभेदन मॉडलों के उपयोग के साथ लघु-मध्यम पैमाने के पूर्वानुमानों में सुधार हुआ है। मौसम और जलवायु पूर्वानुमान में और विस्‍तार के लिए, बढ़ी हुई जटिलता और उन्नत डेटा समावेशन तकनीकों के साथ उच्च-विभेदन गतिशील मॉडलों की आवश्यकता है, जो कम्प्यूटेशनल रूप से अत्यधिक गहन हों। पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय के संस्थानों में परिशुद्ध विकास कार्य किए गए हैं जिनमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य शामिल हैं।

एचपीसीएस कार्यक्रम के भाग के रूप में पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय ने निम्नलिखित आवश्यक नवीन पहलों को विकसित करने का काम शुरू किया है।

  1. मौसम और जलवायु के लिए मॉडल विभेदन बढाना।
  2. मानसून मिशन कार्यक्रमों के लिए लघु, मध्यम और दीर्घावधि पैमानों में पूर्वानुमानों में सुधार करना जिसमें विभिन्न भौतिक प्रक्रियाओं के लिए संवेदनशीलता प्रयोग शामिल हैं।
  3. अधिक अवयवों के साथ एनसेंबल पूर्वानुमान मॉडल विकसित करना।
  4. मात्रात्मक अनिश्चितता वाले संभाव्य पूर्वानुमानों के साथ संख्यात्मक तकनीकों और वायुमंडल-समुद्र युग्मित मॉडलों को प्रयोग में लाना।

पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के क्षेत्र में कुशल जनशक्ति की अत्यधिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए प्रशिक्षण क्षमता बढ़ाने के लिए पर्याप्त अभिकलनात्‍मक सुविधाओं की भी आवश्यकता है। इसके अलावा, सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन), आईओआर-एआरसी (क्षेत्रीय सहयोग के लिए हिंद महासागर रिम एसोसिएशन), RIMES (क्षेत्रीय एकीकृत बहु-खतरा पूर्व चेतावनी प्रणाली),आसियान (दक्षिणपूर्व एशियाई राष्ट्र संगठन) देशों को सामाजिक लाभ के लिए रीयल टाइम मौसम और जलवायु संबंधी जानकारी और सेवाएं प्रदान की जाती हैं।

पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय ने मौसम और जलवायु के लिए बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (BIMSTEC) केंद्र, मॉरीशस में मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान के लिए इंडो अफ्रीका केंद्रऔर राष्ट्रीय सुनामी पूर्व चेतावनी केंद्र (जोभारत और आईओआर-एआरसी देशों को सुनामी परामर्शी सेवाएं प्रदान करता है) स्‍थापित किए हैं तथा इनकी मेजबानी भी करता है। पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालयके प्रमुख कार्यक्रमों से संबंधित सभी गतिविधियों को पूरा करने के लिए उच्च कम्प्यूटेशनल शक्ति की आवश्यकता होती है।

उद्देश्‍य

  1. एचपीसीएस सुविधा प्रदान करनातथा पड़ोसी बिम्सटेक देशों, भारत-अफ्रीका केंद्र और अन्य अफ्रीकी देशों को सहायता प्रदान करना।
  2. पूर्वानुमान कौशल में सुधार लाने और प्रचालन पूर्वानुमान प्रणाली पर काम करने के लिए अकादमिक तथा अनुसंधान एवं विकास से जुडे समुदाय के लिए कम्प्यूटेशनल संसाधन उपलब्ध कराना।
  3. अत्याधुनिक बिग-डेटा एनालिटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/मशीन लर्निंग फ्रेमवर्क देने के लिए एक व्यापक कम्प्यूटेशनल और विज़ुअलाइज़ेशन पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना करना।
  4. एचपीसीएस सुविधा को आवश्यक बुनियादी ढांचा और सहायता जैसे निर्बाध बिजली स्रोत (यूपीएस), शीतलन प्रणाली, बिजली और जनरेटर बैकअप प्रदान करके बनाए रखना।

कार्यान्वयन करने वाले संस्थान

  1. भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), पुणे।
  2. राष्‍ट्रीय मध्‍यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केन्‍द्र (एनसीएमआरडब्ल्यूएफ), नोएडा।

उपलब्धियां

  1. एचपीसीएस की कम्प्यूटेशनल क्षमता को चरण I (2013-14) में अतिरिक्त 1.1 पीएफ से बढ़ाकर ~1.3 पीएफ कर दिया गया था। यह सुविधा आईआईटीएम और एनसीएमआरडब्ल्यूएफ में स्थापित की गई है तथा समर्पित एनकेएन लिंकेज के माध्यम से पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय की अन्य इकाइयों इसका उपयोग कर सकती हैं।
  2. चरण 2 में 4.0 PF की HPC प्रणाली IITM में स्थापित की गई थी और 2.8 PF की NCMRWF में स्थापित की गई थी। IITM में इस प्रणाली की भंडारण क्षमता 8 PB (पेटाबाइट) और NCMRWF में 5.6 PB है।
  3. एनसीएमआरडब्ल्यूएफ में एचपीसी प्रणाली आईएमडी, एनसीएमआरडब्ल्यूएफ और भारतीय राष्‍ट्रीय महासागर सूचना सेवा केन्‍द्र (इंकॉइस), हैदराबाद की प्रचालन और अनुसंधान गतिविधियों के लिए है।
  4. आईआईटीएम में एचपीसी प्रणाली मुख्य रूप से ऋतुनिष्‍ठ और विस्तारित अवधि पूर्वानुमान तथा वायु गुणवत्ता पूर्व चेतावनी प्रणालियों के लिए आईएमडी के अनुसंधान और प्रचालन कार्यों के लिए है। इसका उपयोग इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) जलवायु अनुमानों और अन्य ऐतिहासिक और प्राकृतिक कार्यों के संचालन के लिए भी किया जाता है। कुल 16.7 PB (IITM में 9.7 PB और NCMRWF में 7.0 PB) डिस्क स्टोरेज स्थापित किया गया है।
  5. ऐतिहासिक डेटा संग्रहीत करने के लिए कुल 36 PB (IITM में 27 PB और NCMRWF में 19 PB) टेप लाइब्रेरी उपलब्ध है।
  6. आईआईटीएम और एनसीएमआरडब्ल्यूएफ में दीर्घकालिक डेटा अभिलेखीय आवश्यकताओं के लिए प्रायोगिक आधार पर 5 पीबी एचपीएस सर्वर लगाया गया है।
  7. एनसीएमआरडब्ल्यूएफ और आईआईटीएम में एचपीसी प्रणालियों का रखरखाव99% से अधिक अपटाइम पर किया गया था।
  8. गैर नियोजित/नियोजित शटडाउन को कम करने के उपायों के रूप में इंकॉइस, आईएमडीऔर एनसीएमआरडब्‍ल्‍यूएफके प्रचालन कार्यों के लिए आईआईटीएममें एक मिरर साइट बनाई गई थी।
  9. वैज्ञानिकों और नागरिकों सहित विभिन्न हितधारकों के लिए वायुमंडलीय अनुसंधान डेटा केंद्र का रखरखाव किया गया था।

योजनाएं

  1. 2022 तक कम से कम 40 पीएफ, 2025 तक 150 पीएफ और 2030 तक 500 पीएफ के साथ एचपीसी संसाधनों को बढ़ाना।
  2. एचपीसी संसाधनों और डेटा सेंटर डिजाइन और कार्यकलापों के समानांतर और मापनीयता के संबंध में अनुसंधान परियोजनाओं को सहायता देना।

 

मानसून मिशन (एमएम-II)

हमारे देश की कृषि उत्पादकता और अर्थव्यवस्था काफी हद तक भारतीय मानसून वर्षा के प्रदर्शन पर निर्भर करती है। इसलिए, जून से सितंबर के महीनों के दौरान भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (आईएसएमआर) की कुल मात्रा का पूर्वानुमान (जिसे ऋतुनिष्‍ठ वर्षा भी कहा जाता है, जो देश भर में लगभग 80% वार्षिक वर्षा पैदा करती है), इसकी अंतर-ऋतु और अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलतातथा अत्यधिक वर्षा की स्थितियों का ज्ञान कृषि, जल संसाधन और आपदा प्रबंधन की योजना और प्रबंधन के लिए बहुत उपयोगी है, जिससे समाज और देश के नागरिकों को बहुत लाभ होता है। आईएसएमआर का अल नीनो के साथ एक वैश्विक टेलीकनेक्शन है, जो पूर्वी प्रशांत महासागर के ऊपर समुद्री सतह के तापमान (एसएसटी) और इसके विपरीत चरण ला-नीना, जो उसी क्षेत्र में एसएसटी के ठंडा होने से संबंधित है, के एक विषम तापन से संबंध रखता है। चूंकि इसके संकेत कुछ महीने पहले प्राप्त होते हैं, इसलिएआईएसएमआर के ऋतुनिष्‍ठ पूर्वानुमान के लिए इसका एक पूर्वानुमानित मूल्य है।

पिछले कुछ दशकों में, अल नीनो और दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) घटना पर अनेक अध्ययन किए गए हैं जो अन्य क्षेत्रीय जलवायुओं पर व्यापक प्रभाव के साथ वैश्विक अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता का एक प्रभावी तरीका है। हालांकि, एक दशक पहले (2010 तक) तक, आईएसएमआर के पूर्वानुमान कौशल में सुधार लाने में कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली थी। ऐतिहासिक रूप से, सांख्यिकीयमॉडलों का उपयोग भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा के संचालन के लिए दीर्घावधि पूर्वानुमान के लिए किया गया था। लेकिन मानसून की परिवर्तनशीलता, इसके टेलीकनेक्शन तंत्रों और इस ज्ञान के बावजूद कि यह भारतीय क्षेत्र में एक प्रमुख ताप स्रोत है, जो प्रमुख वायुमंडलीय परिसंचरणों को संचालित करता है,प्रचालन पूर्वानुमानों में पूर्वानुमान कौशल में सुधार प्रशंसनीय नहीं था। इसके अलावा, सांख्यिकीय मॉडलों में उच्च स्थानिक और कालिक विभेदनों में मानसून वर्षा पूर्वानुमान करने में बाधाएं थीं।

समुद्र-वायुमंडल युग्मन के साथ गतिशील संख्यात्मक मॉडलों में हाल के सुधारों ने छह महीने के लीड समय के साथ ईएनएसओ एसएसटी का अच्छा पूर्वानुमान कौशल दिखाया है। मध्य प्रशांत क्षेत्र में एक ऋतु लीड समय पर ऋतुनिष्‍ठ औसत वर्षा बाधा कौशल भी बहुत अच्छा है। हाल के दिनों में, गतिशील मॉडलों के साथ, कई नए उपागमों (उच्च संकल्प, बेहतर भौतिक मानकीकरण योजनाएं, सुपर पैरामीटरकरण, डेटा आत्मसात, आदि) ने दर्शाया है कि उष्णकटिबंधों में परिवर्तनशीलता को यथोचित रूप से हल किया जा सकता है, जिससे मानसून के पूर्वानुमान में सुधार के लिए आशावाद पैदा होता है।हालांकि दुनिया में अनेक केंद्र ऋतुनिष्‍ठ औसत जलवायु का नियमित पूर्वानुमान करने के लिए गतिशील मॉडलिंग ढांचों का उपयोग कर रहे थे, भारत में ऐसा ढांचा 2012 से पहले नहीं था।

समय के अलग-अलग पैमानों पर भारतीय मानसून वर्षा के लिए एक अत्याधुनिक गतिशील पूर्वानुमान प्रणाली विकसित करने के विजन के साथ भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने 2012 में राष्ट्रीय मानसून मिशन (एनएमएम) (अब मानसून मिशन, एमएमके रूप में जाना जाता है) का शुभारंभ किया। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालयने नेशनल सेंटर फोर इनवायरनमेंटल प्रीडिक्‍शन (एनसीईपी), यूएसए, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अन्य संगठनों (एनसीएमआरडब्‍ल्‍यूएफ, आईएमडीऔर इंकॉइस) और विभिन्‍न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानोंएवं संगठनों के सहयोग से भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), पुणे को इस मिशन के निष्पादन और समन्वय की जिम्मेदारी सौंपी। एनसीईपी की जलवायु पूर्वानुमान प्रणाली (सीएफएस) को वर्तमान में उपलब्ध युग्मित जलवायु मॉडलों में सर्वश्रेष्‍ठ पाई गई है, और इसके दूसरे संस्करण (सीएफएसवी2) को उपर्युक्त प्रयोजनार्थमूल मॉडलिंग प्रणाली के रूप में आईआईटीएम पुणे में लागू किया गया है। आईआईटीएम के वैज्ञानिकों ने सहयोगियों के साथ मिलकर मॉडल पूर्वाग्रह में कमी के साथ भारतीय मानसून क्षेत्र में इस मॉडल के पूर्वानुमान कौशल में सुधार के लिए इस आधार मॉडल पर आवश्यक मॉडल विकास कार्य किए। यूके मौसम विज्ञान कार्यालय के एकीकृत मॉडल (यूएम) को एनसीएमआरडब्ल्यूएफ, नोएडा में लघु और मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमानों के लिए आधार मॉडल के रूप में लागू किया गया था। एनसीएमआरडब्ल्यूएफ के वैज्ञानिकों और सहयोगियों ने इस मॉडल पर काम किया। इसके अलावा, आईएमडी और एनसीएमआरडब्ल्यूएफ के सहयोग से, आईआईटीएम पुणे में विस्तारित अवधि पूर्वानुमान और उच्च विभेदन लघु अवधि पूर्वानुमान के लिए सीएफएस और जीएफएस आधारित मॉडलों का उपयोग किया गया था। मैरीलैंड विश्वविद्यालय, यूएसए के सहयोग से एनसीएमआरडब्ल्यूएफ, इंकॉइस और आईआईटीएम में मॉडल डेटा समावेशन कार्य किए गए। आईआईटीएम और एनसीएमआरडब्ल्यूएफ में स्थापित उच्‍च निष्‍पादन सुपर कंप्यूटिंग प्रणाली (एचपीसीएस) ने मॉडलिंग अवसंरचना प्रदान की। अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं को एमएम के माध्यम से वित्त पोषित किया गया था और जिन्हें पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा गठित महत्वपूर्ण समितियों के मार्गदर्शन के साथ आईआईटीएम में मानसून मिशन निदेशालय (एमएमडी) द्वारा समन्वित किया गया था। एमएम-I के दौरान अनेक उच्च स्तरीय प्रशिक्षण पाठ्यक्रम, जनशक्ति विकास कार्य, अंतरराष्ट्रीय प्रमुख जांचकर्ताओं के साथ काम करने के लिए विदेशों में युवा वैज्ञानिकों की प्रतिनियुक्ति, उच्च स्तरीय बैठकें और कार्यक्रम हुए थे।

2017 में, मानसून मिशन का पहला चरण (जिसे एमएम-I कहा गया है) सफलतापूर्वक पूरा हुआ था। बेहतर हिंडकास्ट कौशल (ऋतुनिष्‍ठ मानसून का पूर्वव्यापी पूर्वानुमान) के साथ ऋतुनिष्‍ठ पूर्वानुमान प्रणाली को प्रचालन पूर्वानुमान के लिए आईएमडी को सौंप दिया गया था और इस संशोधित मॉडल को मानसून मिशन सीएफएस (एमएमसीएफएस) कहा गया। 4 सप्ताह पहले तक मानसून और अन्य मौसम घटनाओं के सक्रिय/ब्रेक स्‍पैलों के प्रचालन पूर्वानुमान के लिए विस्तारित अवधि पूर्वानुमान प्रणाली भी आईएमडी को सौंप दी गई थी। एमएम-I की सफलता ने दूसरे चरण के रूप में इसे जारी रखा।

मानसून मिशन का दूसरा चरण (एमएम-II), जो सितंबर 2017 में शुरू हुआ, मॉडल विकास गतिविधियों को जारी रखते हुए मौसम/जलवायु की चरम घटनाओं का पूर्वानुमान करने तथाविशेष रूप से कृषि, जल विज्ञान और ऊर्जा क्षेत्र के क्षेत्र में मानसून पूर्वानुमानों के आधार पर जलवायु अनुप्रयोगों के विकास पर केंद्रित है। एमएम-II में, उच्च-विभेदनअल्‍पावधि पूर्वानुमानों, चरम घटनाओं के पूर्वानुमान करनेऔर कृषि, जल विज्ञान, आपदा प्रबंधन, ऊर्जा क्षेत्र, आदि के लिए अनुप्रयोगों को विकसित करने के लिए पूर्वानुमानों का उपयोग करने पर ध्यान दिया गया है। एक नई पहल के रूप में,चरम घटनाओं, गर्ज के साथ तूफान एवं आकाशीय बिजलीके गतिशील पूर्वानुमान प्रारंभ किए गए हैं।भारतीय मानसून के पूर्वानुमान कौशल को बढ़ाने और मॉडल पूर्वाग्रह को कम करने के लिएविभेदन में विस्तार तथा मॉडल में भौतिक प्रक्रियाओं में सुधार के माध्‍यम से मॉडल विकासजारी है।

उद्देश्य

  1. देश भर में प्रचालन मानसून पूर्वानुमान कौशल में सुधार लाने के लिएशैक्षणिक और अनुसंधान एवं विकास संगठनों, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों, के बीच एक कार्यशील साझेदारी का निर्माण करना।
  2. 'ऋतुनिष्‍ठ और विस्तारित अवधि पूर्वानुमान' तथा'लघु और मध्यम अवधि (दो सप्ताह तक) के पूर्वानुमान कौशल में सुधार के लिए एक अत्याधुनिक गतिशील मॉडलिंग ढांचा स्थापित करना।

कार्यान्वयन करने वाले संस्थान

  1. भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), पुणे
  2. राष्‍ट्रीय मध्‍यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केन्‍द्र (एनसीएमआरडब्ल्यूएफ), नोएडा
  3. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी), नई दिल्ली
  4. भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (इंकॉइस), हैदराबाद

उपलब्धियां

  1. अल्‍पावधि पूर्वानुमान: मॉडल के 21 मेम्‍बर्स का उपयोग करके 12 किमी पर अल्‍पावधि पूर्वानुमान के लिए दुनिया कीअधिकतमविभेदन वैश्विक एनसेंबल पूर्वानुमान प्रणाली (जीईएफएस) आईआईटीएमद्वारा विकसित की गई और संचालन के लिए आईएमडीको सौंप दी गई। 12.5 किमी ईपीएस आधारित वर्षा संभाव्यता ने आईएमडी के कृषि मौसम अनुप्रयोग के लिए वर्षा की संभावना के ब्लॉक स्तर के पूर्वानुमान की शुरुआत करने में सक्षम बनाया। इस मॉडल ने भारी वर्षा और उष्णकटिबंधीय चक्रवात पथ, तीव्रता और थल प्रवेश के पूर्वानुमान में सुधार किया है। उच्च-विभेदन पूर्वानुमान ने मिट्टी की नमी, वर्षा और हवा के पूर्वानुमान के मॉडल पूर्वानुमान के आधार पर जंगल में आग के आउटलुक भी मदद की है।
  2. डेटा समावेशन: आदित्य एचपीसी, आईआईटीएम में सीएफएसवी2 के लिए लोकल एनसेम्बल ट्रांसफॉर्म कलमैन फिल्टर (एलईटीकेएफ) तकनीक (कमजोर रूप से युग्मित) का उपयोग करते हुए युग्मित समुद्री-वायुमंडलीय डेटा समावेशन प्रणाली विकसित कर कार्यान्वित की गई है। हाल ही में आईआईटीएम में लैंड डेटा समावेशन का काम शुरू हुआ है।
  3. निर्बाध पूर्वानुमान प्रणाली: MoM5 को मौजूदा मानसून मिशन मॉडल से युग्‍मन करके एक निर्बाधपूर्वानुमान प्रणाली संस्करण 0.0 की शुरुआत की।
  4. ऋतुनिष्‍ठ पूर्वानुमान: 2019-2020 के दौरान, आईआईटीएम, पुणे में विकसित की गई मानसून मिशन जलवायु पूर्वानुमान प्रणाली (एमएमसीएफएस) का उपयोग करके दक्षिण पश्चिम मानसून का प्रचालन ऋतुनिष्‍ठ पूर्वानुमान तैयार किया गया था। CFSv2 में नदी अपवाह को एकीकृत करके जल विज्ञान और कृषि में जलवायु अनुप्रयोग के लिए मॉडल विकास किया जा रहा है।
  5. विस्‍तारित अवधि पूर्वानुमान: लू के रियल-टाइम विस्‍तारित अवधि पूर्वानुमान के लिए रणनीति, विस्‍तारित अवधि के लिए रियल-टाइम में मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन का पूर्वानुमान करने की एक कार्यप्रणालीऔर रियल-टाइम में चक्रवात जननका पूर्वानुमान करने के लिए बेहतर जेनेसिस पोटेंशियल पैरामीटर विकसित किया गया।
  6. गर्ज के साथ तूफान और आकाशीय बिजली पूर्वानुमान प्रणाली: डबल्‍यूआरएफमॉडल में डायनेमिकल लाइटनिंग पैरामीटराइजेशन (डीएलपी) का प्रयोग करते हुए गर्जके साथ तूफान और आकशीयल बिजली के पूर्वानुमान के लिए मॉडलिंग ढांचा विकसित करने के लिए नई पहल की गई।
  7. अल्‍पावधि उच्‍च विभेदन एन्सेम्बल पूर्वानुमान: जीएफएस (12 किमी) मॉडल पर आधारित वर्षा का परसेंटाइल आधारित (90वां और 95वां) चरम पूर्वानुमान विकसित कर प्रचालित किया, जीईएफएस एनसेंबल पूर्वानुमान के आधार पर भारत की सभी नदी घाटियों के लिए एक संभाव्य पूर्वानुमान विकसित किया और भारत के विभिन्न नदी घाटियों के लिए आईएमडी के बाढ़ निगरानी कार्यालयों (एफएमओ) द्वारा प्रचालित किया गया। गर्ज के साथ तूफान आने, आंधी और ओला के पूर्वानुमान के लिए जीईएफएस आधारित सूचकांक जैसे सुपरसेल कंपोजिट पैरामीटर (एससीपी), विंड गस्ट इंडेक्स, और हेल इंडेक्स विकसित किए गए।

योजनाएं

  1. वर्तमान मॉडलों की तुलना में सब-ग्रिड पैमाने की घटनाओं का बेहतर तरीके से प्रबंधन करने के लिए मॉडलों को विकसित करके अति उच्च-विभेदन पूर्वानुमान बनाना। (उपागम होना चाहिए प्रेक्षण→डीएनएस→एलईएस→जीसीएम)
  2. 1-किमी मौसम पूर्वानुमान सृजित करनेतथा विस्तारित एवं ऋतुनिष्‍ठ समयपैमानों पर गतिशील मॉडलसें के कौशल को बढ़ाने के लिए (कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग करते हुए) उपकरण विकसित करना ।
  3. जलवायु मॉडलों में नए मॉड्यूल (तरंग मॉडल, समुद्री जैव-भू रसायन विज्ञान, रसायन विज्ञान-एरोसोल आदि) को शामिल करना ताकि विभिन्न उत्पादों जैसे संभावित मत्‍स्‍यन क्षेत्रों, समुद्री दशा पूर्वानुमान तथा अन्य गतिविधियों की परामर्शिकाएं जारी की जा सकें जिन्हें ऋतुनिष्‍ठ और विस्तारित अवधि समय पैमानोंपर शुरू किया जा सके।

वायुमंडलीय प्रेक्षण नेटवर्क

आईएमडी की वायुमंडलीय प्रेक्षण नेटवर्क स्‍कीम एक सतत योजना है जिसमें मुख्य रूप से चल रहे कार्यक्रमों को एक एकीकृत तरीके से शामिल किया गया है जिसका उद्देश्य प्रेक्षण नेटवर्कों को बनाए रखना है। यह स्‍कीम पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय की व्‍यापक स्कीम वायुमंडलीय एवं जलवायु अनुसंधान- मॉडलिंग, प्रेक्षण प्रणालियां एवं सेवाएं (अक्रॉस) कार्यक्रम का एक भाग है।

मौसम विज्ञान संबंधी सेवाओं का समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। विभिन्न कालिक और स्थानिक पैमानों पर मौसम और जलवायु के सटीक पूर्वानुमान के लिएसार्वजनिक/निजी/सरकारी क्षेत्रों की मांग वैश्विक जलवायु में परिवर्तनशीलता के संभावित प्रभावों के कारण बढ़ रही है।

मौसम और जलवायु के बेहतर और विश्वसनीय पूर्वानुमान के लिए व्यापक डेटा समावेशन प्रणालियों द्वारा समर्थित उच्च विभेदन गतिशील मॉडलों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, विभिन्न प्लेटफॉर्म आधारित प्रेक्षण प्रणालियों के माध्यम से विभिन्न मौसम प्रणालियों की गहन निगरानी न केवल वर्तमान मौसम प्रणालियों के बारे में आवश्यक जानकारी प्रदान करती है, अपितु संख्यात्मक मॉडलों में उनका प्रभावी समावेश कुशल पूर्वानुमान सृजित करने के लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करता है।

वर्तमान प्रेक्षणों को जारी रखने और आने वाले समय के लिए डब्ल्यूएमओ प्रक्रियाओं और मानकों के अनुसार जारी रखने की आवश्यकता है। मौसम विज्ञान संबंधी सेवाओं के संचालन के लिए सतह, ऊपरीतन वायु और विमान के माध्यम से विभिन्न वायुमंडलीय मापदंडों का मापन एक प्रमुख आवश्यकता है। पिछले कुछ वर्षों में अनेक प्रमुख उन्नत प्रौद्योगिकी-आधारित उपकरण स्थापित किए गए हैं। इन उपकरणों का रखरखाव और संवर्द्धन आवश्यक है ताकि प्रौद्योगिकी उन्नयन का लाभ निरंतर आधार पर उपलब्ध हो सके। समाज को उच्च गुणवत्ता वाली मौसम विज्ञान संबंधी सेवाएं प्रदान करने के लिए त्वरित प्रगति प्राप्त करने के लिए आईएमडी को प्रेक्षणात्‍मक नेटवर्क के उन्नयन और उसे बनाए रखने की आवश्यकता है। मौसम विज्ञान की स्थितियों की निगरानी करने तथा मौसम पूर्वानुमान और अन्य उपयोगों के लिए मौसम संबंधी डेटा प्रदान करने के लिए आईएमडी पूरे देश में अनेक प्रकार के प्रेक्षण नेटवर्कों का संचालन और रखरखाव कर रहा है। एकीकृत प्रेक्षण प्रणाली को बनाए रखना इस योजना की प्रमुख रणनीति होगी।

उद्देश्य

  1. डॉपलर मौसम रडार (डीडब्ल्यूआर), स्वचालित वर्षामापी (एआरजी), स्वचालित मौसम प्रणालियों (एडब्ल्यूएस), ऊपरीतन वायु, सतह और पर्यावरणीय वेधशालाओं आदि सहित प्रेक्षणात्‍मक नेटवर्कोंको बनाए रखना और उनका विस्‍तार करना।
  2. उपग्रह मौसम विज्ञान अनुप्रयोगों के लिए बहु प्रसंस्करण, कंप्यूटिंग और संचार सुविधाओं को बनाए रखना और स्थापना।

मौसम और जलवायु सेवाएं

मौसम और जलवायु सेवाएं

आईएमडी की स्कीम मौसम और जलवायु सेवाएं एक सतत योजना है जिसमें मुख्य रूप से एक एकीकृत तरीके से चल रहे कार्यक्रमों को शामिल किया गया है जिसका उद्देश्य पूरे देश में कुशल मौसम और जलवायु सेवाएं प्रदान करना है।

आईएमडी मौसम के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों कृषि, सिंचाई, नौवहन, विमानन, अपतट तेल अन्वेषण खोज आदिको सेवाएं प्रदान करता है। पिछले कुछ वर्षों में, उष्णकटिबंधीय चक्रवातों, प्रचंड गर्ज के साथ तूफानों, आंधी, भारी वर्षा और बर्फबारी की घटनाओं,शीतलहर और लू आदिसहित चरम मौसम घटनाओं की अत्याधुनिक निगरानी, पता लगाने और पूर्व चेतावनी के लिए विशेष सेवाएं भी बनाई गई हैं। मौसम विज्ञान संबंधी सेवाओं का समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। विभिन्न कालिक और स्थानिक पैमानों पर मौसम और जलवायु के सटीक पूर्वानुमान के लिए सार्वजनिक/निजी/सरकारी क्षेत्रों की मांग वैश्विक जलवायु में परिवर्तनशीलता के संभावित प्रभावों के कारण बढ़ रही है।मौसम विज्ञान सेवाएं अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) तथा क्षमता निर्माण में निरंतर निवेश पर निर्भर हैं ताकि अर्ध-संचालन वातावरण में केंद्रित प्रदर्शन मूल्यांकन के माध्यम से मौसम और जलवायु विज्ञान में प्रगति को

सेवा में शामिल किया जा सके। वर्तमान सेवाओं में और सुधार के लिए अनुसंधान एवं विकास के परिणामों को पूरी तरह से प्रचालनरत उत्पादों, सेवाओं में प्रभावी ढंग से बदलने तथा निर्णय निर्माताओं और प्रयोक्‍ताओं के साथ संबंध विकसित करने के प्रभावी साधनों की आवश्यकता है। विशेष रूप से, निर्णय लेने के लिए उपयोगी उपकरणों, उत्पादों और सेवाओं के माध्यम से संचार के लिए सार्वजनिक मौसम सेवाओं का प्रभावी उपयोग समय की आवश्यकता है।

"मौसम और जलवायु सेवाएं" स्‍कीम के प्रमुख संघटक हैं:

  1. ग्रामीण कृषि मौसम सेवा (कृषि मौसम विज्ञान परामर्शिका सेवाएं)
  2. विमानन मौसम विज्ञान सेवाओं का विस्तार
  3. जलवायु सेवाएं
  4. प्रचालनरत मौसम विज्ञान में प्रशिक्षण
  5. क्षमता निर्माण

उद्देश्य

  1. अगले 3-5 दिनों के लिए कुशल, ब्लॉक स्तर के पूर्वानुमानों के लिए एक उन्नत मौसम पूर्वानुमान प्रणाली विकसित करना तथा कृषि, आपदा प्रबंधन, जल संसाधन, बिजली, पर्यटन और तीर्थयात्रा, स्मार्ट सिटीज, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र और परिवहन जैसे क्षेत्रों के लिए परामर्शिकाएं विकसित करना।
  2. कृषि मौसम परामर्शिका सेवाओं (एएएस) के विस्तार के लिए देश के सभी जिलों में जिला कृषि-मौसम इकाइयों (डीएएमयू) की स्थापना।
  3. संचार के विविध माध्यमोंके माध्यम से 94 मिलियन किसानों तक मौसम आधारित कृषि मौसम परामर्शिकाओं की पहुंच का विस्तार करना,फीडबैक का संग्रह और एएएस के प्रभाव का आकलन।
  4. देश के सभी नागरिक हवाई अड्डों के लिए स्वचालित विमानन मौसम प्रेक्षण प्रणाली और उन्नत पूर्वानुमान उपकरणों के साथ विमानन सुरक्षा के लिए एक अत्याधुनिक समर्थन प्रणाली विकसित करना।
  5. ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों पर नए एयरोड्रम एमईटी कार्यालयों की स्थापना तथा भारतीय वायु सेना, भारतीय सेना के हेलीकॉप्टर और निम्न-स्तरीय उड़ान संचालन का समर्थन करने के लिए हेलीपोर्ट्स, लैंडिंग ग्राउंड और अन्य रणनीतिक स्थानों पर तथा महत्वपूर्ण पर्यटन एवं तीर्थयात्रा स्‍थानों पर भीस्वचालित हेलीपोर्ट मौसम प्रेक्षण और संचार प्रणाली की स्थापना करना।
  6. राष्ट्रीय और क्षेत्रीय जलवायु सेवाएं प्रदान करने के लिए एकीकृत उन्नत जलवायु डेटा सेवाएं पोर्टल के साथ एक अत्याधुनिक जलवायु डेटा केंद्र स्थापित करना। जलवायु डेटा केंद्र जलवायु निगरानी, जलवायु पूर्वानुमान, जलवायु डेटा प्रबंधन और जलवायु अनुप्रयोग की मौजूदा प्रचालनात्‍मक गतिविधियों के उन्नयन के माध्यम से देश के लिए बेहतर और विशिष्ट जलवायु सेवाओं का एक व्यापक सेट प्रदान करेगा।
  7. दक्षिण एशिया क्षेत्र के लिए डब्‍ल्‍यूएमओद्वारा मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय जलवायु केंद्र (आरसीसी) के रूप में इस क्षेत्र को उपयुक्त जलवायु सेवाएं प्रदान करना।
  8. नए प्रवेशकों, करियर प्रगति पाठ्यक्रमों और विशेष विषयों में अल्पकालिक पाठ्यक्रम, देशों के कार्मिकों के प्रशिक्षण के लिए दीर्घावधि प्रारंभिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का बढा हुआ भार वहन करने के लिएप्रशिक्षण प्रतिष्ठान की क्षमता को बढ़ाने के लिएप्रशिक्षण के बुनियादी ढांचे और सुविधाओं को उन्नत करना।
  9. डब्‍ल्‍यूएमओ, अफ्रीका और एशिया के लिए क्षेत्रीय एकीकृत बहु-खतरा पूर्व चेतावनी प्रणाली (RIMES)/एशिया और प्रशांत के लिए आर्थिक और सामाजिक आयोग (ESCAP)/ग्‍लोबलफ्रेमवर्क फोर क्‍लाइमेट के बीच योगदान।
  10. दक्षिण एशिया आदि में सेवाएँ (GFCS)।
  11. कार्यशालाओं, संगोष्ठियों, प्रशिक्षणों, संगोष्ठियों,उपयोगकर्ता सम्मेलनों, विज्ञापन और प्रचार, आउटरीच गतिविधियों आदि का आयोजन करना।

 

पूर्वानुमान प्रणाली का उन्नयन

आईएमडी की पूर्वानुमान प्रणाली का उन्नयन स्‍कीम एक सतत योजना है जिसमें मुख्य रूप से एक एकीकृत तरीके से चल रहे कार्यक्रमों को शामिल किया गया है जिसका उद्देश्य देश भर में विभिन्‍न सेक्‍टरों में कुशल मौसम और जलवायु सेवाएं प्रदान करना है।यह स्‍कीम पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालयकी व्‍यापक स्‍कीम "वायुमंडल और जलवायु अनुसंधान-मॉडलिंग प्रेक्षण प्रणालियां और सेवाएं (अक्रॉस)" का एक भाग है।

पूर्वानुमान प्रणाली के उन्नयन की प्रस्तावित योजना का उद्देश्य मौसम पूर्वानुमानों की सटीकता में सुधार करना है ताकि इसे अंतरराष्ट्रीय मानकों के बराबर लाया जा सके जिससेअनेक क्षेत्रों जैसे सेना के अभियानों, वायु अभियान, कृषि, पर्यटन, पर्वतारोहण, विमानन, सड़क और संचार, बिजली उत्‍पादन, जल प्रबंधन, पर्यावरण अध्ययन, खेल और साहसिक कार्य, परिवहन, सरकारी प्राधिकरणों, गैर सरकारी संगठनों और सामान्‍य रूप से आम जनता को मदद मिलेगी।

Objectives of MC4

  1. Modelling of global and regional climate variability and change, and assess impact using Earth System Models and high-resolution climate models.
  2. Conduct observational programs, numerical simulations and laboratory investigations focusing on monsoon cloud dynamics and microphysics.
  3. Conduct ground-based measurements of greenhouse gas (GHG) concentrations and fluxes, chemical trace gases and meteorological parameters.
  4. Reconstruct past variations in the Asian monsoon extending back to several thousands of years.
  5. Outreach, training and dissemination of reliable climate information.
  6. Build in-house capacity in global and regional climate modelling and observations.
  7. Establish an Atmospheric Research Testbed in Central India (ART-CI).
  8. Establish a National Climate Reference Network (NCRN).

 

To achieve these objectives, MC4 has the following four sub-programmes.

1. Centre For Climate Change Research (CCCR) including virtual water centre

A state-of-the-art CCCR was established at the Indian Institute of Tropical Meteorology (IITM), Pune, to improve the understanding of climate change in the tropics and to enable improved assessments of regional climate responses to global climate change.

Achievements of CCCR

  1. Contributed to CMIP6 (Coupled Model Intercomparison Project) experiments and IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) sixth assessment report (AR6), for the first time from India, using the IITM Earth System Model (IITM-ESM). Multi-century simulations corresponding to pre-industrial and present-day conditions on India’s first Earth System Model version-2 (IITM-ESMv2) show significant improvements in capturing key aspects of the time-mean atmosphere and ocean large scale circulation.
  2. Completed several DECK (Diagnostic, Evaluation, and Characterisation of Klima) simulations of CMIP6. These include simulations of 300-year spin-up and 500-year pre-industrial control, recent historical past (~150 years), AMIP (Atmospheric Model Intercomparison Project), and transient carbon dioxide (CO2) and abrupt CO2 increase.
  3. Generated an ensemble of high resolution downscaled projections of regional climate until 2100 for the IPCC scenarios (Representative Concentration Pathway: RCP4.5 and RCP8.5) at CCCR, IITM using a regional climate model (International Centre for Theoretical Physics: ICTP-RegCM4) at a 50 kilometres (km) resolution as part of the Coordinated Regional Downscaling Experiment (CORDEX) South Asia activity.
  4. Developed and tested a 27 km global model of the atmospheric-only component of the IITM-ESM for downscaling studies in the coming years (2020-24).

2. Physics and Dynamics of TropicalClouds (PDTC)

PDTC aims to advance the understanding of tropical clouds and their interaction with the environment. Thisis required for better prediction of monsoon, and to establish a scientific rationale for cloud seeding operations to increase rainfall efficiency. It has the following four sub-projects.

  1. Cloud and Aerosol Interaction and Precipitation Enhancement EXperiment (CAIPEEX)
  2. High Altitude Cloud Physics Laboratory (HACPL) in Maharashtra
  3. Thunderstorm dynamics
  4. Radar and satellite meteorology

Achievements of PDTC

  1. Implemented a three years cloud seeding research program with physical and statistical evaluation. A total of 234 randomised samples were collected for formulating protocols for cloud seeding.
  2. Conducted airborne observations of seeded and unseeded clouds with their microphysical changes.
  3. Established an observational facility in the rain shadow region of Western Ghats for clouds, precipitation for weather modification research. It was done with the following four facilities.
    1. Laboratory with c-band radar, microwave radiometer, wind profiler, ceilometer, and radiosonde for cloud studies, aerosol, cloud condensation nuclei (CCN), ice nucleating particle (INP) boundary layer flux measurements, etc.
    2. Rain gauge network of over 120 rain gauges in Solapur, Maharashtra for seeding evaluation and rainfall climatology over the region.
    3. Dynamical and thermodynamic measurements of boundary layer and cloud layer in colocation with c-band radar at Tuljapur, Maharashtra.
    4. Numerical modeling for cloud and precipitation assessment to assist decision making and evaluation for operational seeding.
  4. Established a state-of-art lightning location network over India with about 75 sensors installed in several states. All sensors are integrated with the central processor at IITM. The network will be further expanded with a few more sensors to be added in the future.
  5. Augmented measurements of aerosol chemistry, aerosol hygroscopicity, and volatile organic compounds (VOC) to improve the understanding of CCN activation process.
  6. Conducted INP experiments to understand the variability at mixed-phase cloud conditions. Data sets are being used to develop ice nucleation parameterisation scheme and test.
  7. Continued measurements of aerosol, cloud and precipitation to understand their interactions and orographic precipitation processes.
  8. Established radar facilities in Mandhardev, Maharashtra (precipitation X-band since 2012 and cloud Ka-band since 2014] to understand the processes of orographic cloud and precipitation.
  9. Used ice nucleation measurements to develop ice microphysics parameterisation and testing in the weather forecast model.
  10. Established an Atmospheric Electricity Observatory (AEO) at Bharati, Indian station at Antarctica and SGU University Kolhapur, Maharashtra.
  11. Measured aerosol, radiation, precipitation and cloud microphysics at HACPL, Mahabaleshwar, Maharashtra continuously since 2012.
  12. Implemented measurements of VOC using a high-sensitivity proton transfer reaction mass spectrometer at HACPL to understand their role on secondary organic aerosols, and activation processes of CCN and ice nuclei.
  13. Augmented hygroscopicity measurements for CCN closure studies and CCN parameterisation.
  14. Provided technical guidance to the states on cloud seeding.
  15. Established a Fluid Dynamics Laboratory with particle image velocimetry (PIV) systems and hot wire anemometry to study wall jets and shear flows.
  16. Developed a mobile application named ‘Damini-Lightning Alert’.
  17. Developed a mobile application-based meteorological dissemination system for Kumbh Mela.
  18. Established a rain gauge network in Mumbai metropolitan region, and developed web-based data portal and mobile application to disseminate information for developing flood warning and forecast validation experiments to the public and MoES institutes.
  19. Set up a MESO network of 40 ARGs in Mumbai metropolitan region.
  20. Collated rainfall data from India Meteorological Department (IMD) and Municipal Corporation of Greater Mumbai (MCGM) into a web portal and mobile application.
  21. Provided data of rainfall from ~100 stations to National Center for Coastal Research (NCCR), Chennai and National Center for Medium Range Weather Forecasting (NCMRWF), Noida for developing flood warning system and for forecast validation experiments.
  22. Carried out winter fog field campaign at Indira Gandhi International (IGI) Airport, New Delhi in successive winter seasons. This was done to describe the environmental conditions in which fog develops, by measuring surface micrometeorology, radiation balance, turbulence, the thermodynamic structure of the surface layer, fog droplet, and aerosol microphysics fog water chemistry.
  23. Established an observational facility for fog research at, IGI airport Delhi.
  24. Developed an operational fog forecasting system at IGI airport, New Delhi.
  25. Acquired 100 acres of land in Sehore from the government of Madhya Pradesh for establishment of Atmospheric Research Testbed in the core monsoon zone. Infrastructure development of ARThas commenced.

3. Atmospheric Research Testbeds (ART) for process studies and National Climate Reference Network (NCRN)

The ART program is a highly focused observational and analytical research effort that will use collocated observations from advanced measurement systems to understand various atmospheric processes, particularly cloud, land-atmosphere interactions and radiative processes, testing parameterisations of these processes for use in atmospheric models.

In the first phase, an ART would be set up in central India to study convection, land-atmosphere interactions and precipitation processes. It is expected to provide a sound basis for other research testbed programs in climatologically interesting and important areas. In the second phase, ART is to be set up in the northeast/eastern part of the country to study severe thunderstorm processes.

The NCRN will comprise of a network of ~25 climate reference stations commissioned in several parts of the country, equipped to provide long-term, accurate, and unbiased observations. Such observations are essential to define the state of the integrated Earth system, its history, and its future variability and change. Most historical in situ observations of surface climate variables have been undertaken for real-time applications such as weather forecasting, hydrology, and agro-meteorology. Changes during the time of observation, instrumentation, and operators also contribute to uncertainty. Historically, undocumented or inadequate metadata that describes changes in meteorological measurements has been all too common. The NCRN will make it possible to validate the climate projections from ESMs using accurate and reliable ground truth verifications.

Achievements of ART and NCRN

  1. Acquired 100 acres of land in Silkheda, TahashilShyampur, Sehore, Madhya Pradesh (a core monsoon zone) to establish an ART. Planning and development of physical and equipment infrastructure are under progress.
  2. Site selection for setting up climate reference stations is under progress.

4. Metro Air Quality and Weather Service (MAQWS)

MAQWS is a nearly warning system of air quality of Delhi. It was launched on 15th October 2018 and was developed in collaboration with the National Center for Atmospheric Research (NCAR), USA. The system assimilates data from ~36 monitoring stations which are run by the Central Pollution Control Board (CPCB), Delhi Pollution Control Committee (DPCC), and the System of Air Quality and Weather Forecasting and Research (SAFAR). The system provides location-specific information on air quality in near real-time and its forecast with a lead time of 1 to 3 days. Data from satellites on stubble burning in northwest India or dust storms along with the prevalent meteorological factors helps to improve the initial conditions of the dynamical chemistry transport model. This enables accurate prediction of air-quality, which aids in planning of mitigation strategies. The scientific outcome of MAQWS will allow the implementation of a graded response action plan well in advance. Such an approach could lead to more targeted and cost-effective action on weather information and clean air, focused on public health.

Achievements

  1. Developed an advance version of Fine Dust Model with various dust schemes for large-scale dust storm and transport pathways to predict extreme events in northwest India including Delhi. Augmented it with SAFAR.
  2. The first indigenous impact study of the impact of air pollution on health to understand exposure to particulate matter pollution and their effects on disease burden and life expectancy in each state of India.
  3. Developed a first very high-resolution emission inventory of Delhi for 2018 and identified relative share of various sources.
  4. Developed a dynamic gridded emission inventory of Kharif agriculture residue burning of north Indian states of Punjab and Haryana by synergising three satellite datasets (INSAT-3D, INSAT-3DR and MODIS data) with ground-real measurements. Quantified the contribution of stubble burning in Punjab and Haryana to the air quality of Delhi.
  5. Developed a mechanism to understand prolonged air pollution emergency of Delhi in 2017 and its empirical relationship with fog.
  6. Released advanced version of SAFAR-Air mobile application with multilingual and voice-enabled features for air quality forecast.

 

High Performance Computing System (HPCS)

MoES is mandated to provide the nation with the best possible services of forecasting the monsoons and other weather and climate parameters, ocean state, natural disasters such as earthquakes and tsunamis, and other phenomena related to earth systemnation. Improving these forecasts is a challenging task as it requires solving of complex mathematical equations at a very high spatial resolution across the entire globe. The models to solve these equations need high-performance computational resources, including modern supercomputers with vast parallel computing architecture with support from artificial intelligence and machine learning algorithms.

The existing HPCS resources of 6.8 petaflops (PF) commissioned in 2018 has resulted in improved short-medium scale forecasts with the usage of high-resolution models. For further enhancing weather and climate prediction, high-resolution dynamical models with increased complexity and advanced data assimilation techniques are required, which are highly computationally intensive. Rigorous developmental work has been undertaken at MoES institutes which include following important tasks.

MoES has taken up work to develop the following essential initiatives as part of the HPCS programme.

  1. Enhance model resolution for weather and climate.
  2. Improve forecasts in the short, medium and long-range scales for monsoon mission programs that involve sensitivity experiments for various physical processes.
  3. Develop ensemble prediction models with more members.
  4. Employ numerical techniques and atmosphere-ocean coupled model along with probabilistic forecasts with quantified uncertainty.

Adequate computational facilities are also required to enhance training capacity to cater to the enormous need for skilled manpower in the field of Earth System sciences. In addition, real-time weather and climate-related information and services are provided to the SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation), IOR-ARC (Indian Ocean Rim Association for Regional Co-operation), RIMES (Regional Integrated Multi-hazard Early Warning System), ASEAN (Association of Southeast Asian Nations) countries for societal benefit.

MoES also hosts and established the Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation (BIMSTEC) Centre for Weather and Climate, the Indo Africa Centre for Medium Range Weather Prediction in Mauritius, and the National Tsunami Early Warning Centre (which has been providing tsunami advisory services to India and IOR-ARC countries). High computational power is required to carry out all activities related to the flagship programs of MoES.

Objectives

  1. Provide HPCS facility and extend support to neighbouring BIMSTEC countries, Indo-Africa Centre and other African countries.
  2. Make computational resources available to academic and R&D community to improve forecast skill and work on the operational forecasting system.
  3. Establish a comprehensive computational and visualization ecosystem to deliver state-of-the-art big-data analytics and artificial intelligence/machine learning framework.
  4. Maintain HPCS facility by providing necessary infrastructures and support such as uninterruptible power source (UPS), cooling system, power and generator backup.

Implementing institutions

  1. Indian Institute of Tropical Meteorology (IITM), Pune.
  2. National Centre for Medium Range Weather Forecast (NCMRWF), Noida.

Achievements

  1. The computational capacity of the HPCS was enhanced to ~1.3 PF in phase I (2013-14) by an additional 1.1 PF. The facility is established at IITM and NCMRWF with access to other units of MoES through dedicated NKN linkage.
  2. HPC system of 4.0 PF was installed at IITM and of 2.8 PF was installed at NCMRWF in phase 2. The storage capacity of this system is 8 PB (petabyte) at IITM and 5.6 PB at NCMRWF.
  3. The HPC system at NCMRWF is for operational and research activities of IMD, NCMRWF and Indian National Center for Ocean Information Services (INCOIS), Hyderabad.
  4. The HPC system at IITM is mainly for research and operational runs of IMD for seasonal and extended range predictions and air quality early warning systems. It is also used to conduct Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC) climate projections and other historical and natural runs. A total of 16.7 PB (9.7 PB at IITM and 7.0 PB at NCMRWF) disk storage has been installed.
  5. A total of 36 PB (27 PB at IITM and 19 PB at NCMRWF) tape library is available for storing historic data.
  6. A 5 PB HPS Server has been deployed on pilot basis for long term data archival requirements at IITM and NCRMRWF.
  7. HPC systems at NCMRWF and IITM were maintained at more than 99% uptime.
  8. A mirror site was created at IITM for operational runs of INCOIS, IMD and NCMRWF as measures to mitigate un/planned shutdown.
  9. Atmospheric Research Data Centre was maintained for various stakeholders, including scientists and citizens.

Plans

  1. Augment HPC resources with at least 40 PF by 2022, 150 PF by 2025 and 500 PF by 2030.
  2. Support research projects on parallelization and scalability of HPC resources and data centre design and practices.

 

मानसून मिशन (एमएम-II)

हमारे देश की कृषि उत्पादकता और अर्थव्यवस्था काफी हद तक भारतीय मानसून वर्षा के प्रदर्शन पर निर्भर करती है। इसलिए, जून से सितंबर के महीनों के दौरान भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (आईएसएमआर) की कुल मात्रा का पूर्वानुमान (जिसे ऋतुनिष्‍ठ वर्षा भी कहा जाता है, जो देश भर में लगभग 80% वार्षिक वर्षा पैदा करती है), इसकी अंतर-ऋतु और अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलतातथा अत्यधिक वर्षा की स्थितियों का ज्ञान कृषि, जल संसाधन और आपदा प्रबंधन की योजना और प्रबंधन के लिए बहुत उपयोगी है, जिससे समाज और देश के नागरिकों को बहुत लाभ होता है। आईएसएमआर का अल नीनो के साथ एक वैश्विक टेलीकनेक्शन है, जो पूर्वी प्रशांत महासागर के ऊपर समुद्री सतह के तापमान (एसएसटी) और इसके विपरीत चरण ला-नीना, जो उसी क्षेत्र में एसएसटी के ठंडा होने से संबंधित है, के एक विषम तापन से संबंध रखता है। चूंकि इसके संकेत कुछ महीने पहले प्राप्त होते हैं, इसलिएआईएसएमआर के ऋतुनिष्‍ठ पूर्वानुमान के लिए इसका एक पूर्वानुमानित मूल्य है।

पिछले कुछ दशकों में, अल नीनो और दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) घटना पर अनेक अध्ययन किए गए हैं जो अन्य क्षेत्रीय जलवायुओं पर व्यापक प्रभाव के साथ वैश्विक अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता का एक प्रभावी तरीका है। हालांकि, एक दशक पहले (2010 तक) तक, आईएसएमआर के पूर्वानुमान कौशल में सुधार लाने में कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली थी। ऐतिहासिक रूप से, सांख्यिकीयमॉडलों का उपयोग भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा के संचालन के लिए दीर्घावधि पूर्वानुमान के लिए किया गया था। लेकिन मानसून की परिवर्तनशीलता, इसके टेलीकनेक्शन तंत्रों और इस ज्ञान के बावजूद कि यह भारतीय क्षेत्र में एक प्रमुख ताप स्रोत है, जो प्रमुख वायुमंडलीय परिसंचरणों को संचालित करता है,प्रचालन पूर्वानुमानों में पूर्वानुमान कौशल में सुधार प्रशंसनीय नहीं था। इसके अलावा, सांख्यिकीय मॉडलों में उच्च स्थानिक और कालिक विभेदनों में मानसून वर्षा पूर्वानुमान करने में बाधाएं थीं।

समुद्र-वायुमंडल युग्मन के साथ गतिशील संख्यात्मक मॉडलों में हाल के सुधारों ने छह महीने के लीड समय के साथ ईएनएसओ एसएसटी का अच्छा पूर्वानुमान कौशल दिखाया है। मध्य प्रशांत क्षेत्र में एक ऋतु लीड समय पर ऋतुनिष्‍ठ औसत वर्षा बाधा कौशल भी बहुत अच्छा है। हाल के दिनों में, गतिशील मॉडलों के साथ, कई नए उपागमों (उच्च संकल्प, बेहतर भौतिक मानकीकरण योजनाएं, सुपर पैरामीटरकरण, डेटा आत्मसात, आदि) ने दर्शाया है कि उष्णकटिबंधों में परिवर्तनशीलता को यथोचित रूप से हल किया जा सकता है, जिससे मानसून के पूर्वानुमान में सुधार के लिए आशावाद पैदा होता है।हालांकि दुनिया में अनेक केंद्र ऋतुनिष्‍ठ औसत जलवायु का नियमित पूर्वानुमान करने के लिए गतिशील मॉडलिंग ढांचों का उपयोग कर रहे थे, भारत में ऐसा ढांचा 2012 से पहले नहीं था।

समय के अलग-अलग पैमानों पर भारतीय मानसून वर्षा के लिए एक अत्याधुनिक गतिशील पूर्वानुमान प्रणाली विकसित करने के विजन के साथ भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने 2012 में राष्ट्रीय मानसून मिशन (एनएमएम) (अब मानसून मिशन, एमएमके रूप में जाना जाता है) का शुभारंभ किया। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालयने नेशनल सेंटर फोर इनवायरनमेंटल प्रीडिक्‍शन (एनसीईपी), यूएसए, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अन्य संगठनों (एनसीएमआरडब्‍ल्‍यूएफ, आईएमडीऔर इंकॉइस) और विभिन्‍न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानोंएवं संगठनों के सहयोग से भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), पुणे को इस मिशन के निष्पादन और समन्वय की जिम्मेदारी सौंपी। एनसीईपी की जलवायु पूर्वानुमान प्रणाली (सीएफएस) को वर्तमान में उपलब्ध युग्मित जलवायु मॉडलों में सर्वश्रेष्‍ठ पाई गई है, और इसके दूसरे संस्करण (सीएफएसवी2) को उपर्युक्त प्रयोजनार्थमूल मॉडलिंग प्रणाली के रूप में आईआईटीएम पुणे में लागू किया गया है। आईआईटीएम के वैज्ञानिकों ने सहयोगियों के साथ मिलकर मॉडल पूर्वाग्रह में कमी के साथ भारतीय मानसून क्षेत्र में इस मॉडल के पूर्वानुमान कौशल में सुधार के लिए इस आधार मॉडल पर आवश्यक मॉडल विकास कार्य किए। यूके मौसम विज्ञान कार्यालय के एकीकृत मॉडल (यूएम) को एनसीएमआरडब्ल्यूएफ, नोएडा में लघु और मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमानों के लिए आधार मॉडल के रूप में लागू किया गया था। एनसीएमआरडब्ल्यूएफ के वैज्ञानिकों और सहयोगियों ने इस मॉडल पर काम किया। इसके अलावा, आईएमडी और एनसीएमआरडब्ल्यूएफ के सहयोग से, आईआईटीएम पुणे में विस्तारित अवधि पूर्वानुमान और उच्च विभेदन लघु अवधि पूर्वानुमान के लिए सीएफएस और जीएफएस आधारित मॉडलों का उपयोग किया गया था। मैरीलैंड विश्वविद्यालय, यूएसए के सहयोग से एनसीएमआरडब्ल्यूएफ, इंकॉइस और आईआईटीएम में मॉडल डेटा समावेशन कार्य किए गए। आईआईटीएम और एनसीएमआरडब्ल्यूएफ में स्थापित उच्‍च निष्‍पादन सुपर कंप्यूटिंग प्रणाली (एचपीसीएस) ने मॉडलिंग अवसंरचना प्रदान की। अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं को एमएम के माध्यम से वित्त पोषित किया गया था और जिन्हें पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा गठित महत्वपूर्ण समितियों के मार्गदर्शन के साथ आईआईटीएम में मानसून मिशन निदेशालय (एमएमडी) द्वारा समन्वित किया गया था। एमएम-I के दौरान अनेक उच्च स्तरीय प्रशिक्षण पाठ्यक्रम, जनशक्ति विकास कार्य, अंतरराष्ट्रीय प्रमुख जांचकर्ताओं के साथ काम करने के लिए विदेशों में युवा वैज्ञानिकों की प्रतिनियुक्ति, उच्च स्तरीय बैठकें और कार्यक्रम हुए थे।

2017 में, मानसून मिशन का पहला चरण (जिसे एमएम-I कहा गया है) सफलतापूर्वक पूरा हुआ था। बेहतर हिंडकास्ट कौशल (ऋतुनिष्‍ठ मानसून का पूर्वव्यापी पूर्वानुमान) के साथ ऋतुनिष्‍ठ पूर्वानुमान प्रणाली को प्रचालन पूर्वानुमान के लिए आईएमडी को सौंप दिया गया था और इस संशोधित मॉडल को मानसून मिशन सीएफएस (एमएमसीएफएस) कहा गया। 4 सप्ताह पहले तक मानसून और अन्य मौसम घटनाओं के सक्रिय/ब्रेक स्‍पैलों के प्रचालन पूर्वानुमान के लिए विस्तारित अवधि पूर्वानुमान प्रणाली भी आईएमडी को सौंप दी गई थी। एमएम-I की सफलता ने दूसरे चरण के रूप में इसे जारी रखा।

मानसून मिशन का दूसरा चरण (एमएम-II), जो सितंबर 2017 में शुरू हुआ, मॉडल विकास गतिविधियों को जारी रखते हुए मौसम/जलवायु की चरम घटनाओं का पूर्वानुमान करने तथाविशेष रूप से कृषि, जल विज्ञान और ऊर्जा क्षेत्र के क्षेत्र में मानसून पूर्वानुमानों के आधार पर जलवायु अनुप्रयोगों के विकास पर केंद्रित है। एमएम-II में, उच्च-विभेदनअल्‍पावधि पूर्वानुमानों, चरम घटनाओं के पूर्वानुमान करनेऔर कृषि, जल विज्ञान, आपदा प्रबंधन, ऊर्जा क्षेत्र, आदि के लिए अनुप्रयोगों को विकसित करने के लिए पूर्वानुमानों का उपयोग करने पर ध्यान दिया गया है। एक नई पहल के रूप में,चरम घटनाओं, गर्ज के साथ तूफान एवं आकाशीय बिजलीके गतिशील पूर्वानुमान प्रारंभ किए गए हैं।भारतीय मानसून के पूर्वानुमान कौशल को बढ़ाने और मॉडल पूर्वाग्रह को कम करने के लिएविभेदन में विस्तार तथा मॉडल में भौतिक प्रक्रियाओं में सुधार के माध्‍यम से मॉडल विकासजारी है।

उद्देश्य

  1. देश भर में प्रचालन मानसून पूर्वानुमान कौशल में सुधार लाने के लिएशैक्षणिक और अनुसंधान एवं विकास संगठनों, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों, के बीच एक कार्यशील साझेदारी का निर्माण करना।
  2. 'ऋतुनिष्‍ठ और विस्तारित अवधि पूर्वानुमान' तथा'लघु और मध्यम अवधि (दो सप्ताह तक) के पूर्वानुमान कौशल में सुधार के लिए एक अत्याधुनिक गतिशील मॉडलिंग ढांचा स्थापित करना।

कार्यान्वयन करने वाले संस्थान

  1. भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), पुणे
  2. राष्‍ट्रीय मध्‍यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केन्‍द्र (एनसीएमआरडब्ल्यूएफ), नोएडा
  3. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी), नई दिल्ली
  4. भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (इंकॉइस), हैदराबाद

उपलब्धियां

  1. अल्‍पावधि पूर्वानुमान: मॉडल के 21 मेम्‍बर्स का उपयोग करके 12 किमी पर अल्‍पावधि पूर्वानुमान के लिए दुनिया कीअधिकतमविभेदन वैश्विक एनसेंबल पूर्वानुमान प्रणाली (जीईएफएस) आईआईटीएमद्वारा विकसित की गई और संचालन के लिए आईएमडीको सौंप दी गई। 12.5 किमी ईपीएस आधारित वर्षा संभाव्यता ने आईएमडी के कृषि मौसम अनुप्रयोग के लिए वर्षा की संभावना के ब्लॉक स्तर के पूर्वानुमान की शुरुआत करने में सक्षम बनाया। इस मॉडल ने भारी वर्षा और उष्णकटिबंधीय चक्रवात पथ, तीव्रता और थल प्रवेश के पूर्वानुमान में सुधार किया है। उच्च-विभेदन पूर्वानुमान ने मिट्टी की नमी, वर्षा और हवा के पूर्वानुमान के मॉडल पूर्वानुमान के आधार पर जंगल में आग के आउटलुक भी मदद की है।
  2. डेटा समावेशन: आदित्य एचपीसी, आईआईटीएम में सीएफएसवी2 के लिए लोकल एनसेम्बल ट्रांसफॉर्म कलमैन फिल्टर (एलईटीकेएफ) तकनीक (कमजोर रूप से युग्मित) का उपयोग करते हुए युग्मित समुद्री-वायुमंडलीय डेटा समावेशन प्रणाली विकसित कर कार्यान्वित की गई है। हाल ही में आईआईटीएम में लैंड डेटा समावेशन का काम शुरू हुआ है।
  3. निर्बाध पूर्वानुमान प्रणाली: MoM5 को मौजूदा मानसून मिशन मॉडल से युग्‍मन करके एक निर्बाधपूर्वानुमान प्रणाली संस्करण 0.0 की शुरुआत की।
  4. ऋतुनिष्‍ठ पूर्वानुमान: 2019-2020 के दौरान, आईआईटीएम, पुणे में विकसित की गई मानसून मिशन जलवायु पूर्वानुमान प्रणाली (एमएमसीएफएस) का उपयोग करके दक्षिण पश्चिम मानसून का प्रचालन ऋतुनिष्‍ठ पूर्वानुमान तैयार किया गया था। CFSv2 में नदी अपवाह को एकीकृत करके जल विज्ञान और कृषि में जलवायु अनुप्रयोग के लिए मॉडल विकास किया जा रहा है।
  5. विस्‍तारित अवधि पूर्वानुमान: लू के रियल-टाइम विस्‍तारित अवधि पूर्वानुमान के लिए रणनीति, विस्‍तारित अवधि के लिए रियल-टाइम में मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन का पूर्वानुमान करने की एक कार्यप्रणालीऔर रियल-टाइम में चक्रवात जननका पूर्वानुमान करने के लिए बेहतर जेनेसिस पोटेंशियल पैरामीटर विकसित किया गया।
  6. गर्ज के साथ तूफान और आकाशीय बिजली पूर्वानुमान प्रणाली: डबल्‍यूआरएफमॉडल में डायनेमिकल लाइटनिंग पैरामीटराइजेशन (डीएलपी) का प्रयोग करते हुए गर्जके साथ तूफान और आकशीयल बिजली के पूर्वानुमान के लिए मॉडलिंग ढांचा विकसित करने के लिए नई पहल की गई।
  7. अल्‍पावधि उच्‍च विभेदन एन्सेम्बल पूर्वानुमान: जीएफएस (12 किमी) मॉडल पर आधारित वर्षा का परसेंटाइल आधारित (90वां और 95वां) चरम पूर्वानुमान विकसित कर प्रचालित किया, जीईएफएस एनसेंबल पूर्वानुमान के आधार पर भारत की सभी नदी घाटियों के लिए एक संभाव्य पूर्वानुमान विकसित किया और भारत के विभिन्न नदी घाटियों के लिए आईएमडी के बाढ़ निगरानी कार्यालयों (एफएमओ) द्वारा प्रचालित किया गया। गर्ज के साथ तूफान आने, आंधी और ओला के पूर्वानुमान के लिए जीईएफएस आधारित सूचकांक जैसे सुपरसेल कंपोजिट पैरामीटर (एससीपी), विंड गस्ट इंडेक्स, और हेल इंडेक्स विकसित किए गए।

योजनाएं

  1. वर्तमान मॉडलों की तुलना में सब-ग्रिड पैमाने की घटनाओं का बेहतर तरीके से प्रबंधन करने के लिए मॉडलों को विकसित करके अति उच्च-विभेदन पूर्वानुमान बनाना। (उपागम होना चाहिए प्रेक्षण→डीएनएस→एलईएस→जीसीएम)
  2. 1-किमी मौसम पूर्वानुमान सृजित करनेतथा विस्तारित एवं ऋतुनिष्‍ठ समयपैमानों पर गतिशील मॉडलसें के कौशल को बढ़ाने के लिए (कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग करते हुए) उपकरण विकसित करना ।
  3. जलवायु मॉडलों में नए मॉड्यूल (तरंग मॉडल, समुद्री जैव-भू रसायन विज्ञान, रसायन विज्ञान-एरोसोल आदि) को शामिल करना ताकि विभिन्न उत्पादों जैसे संभावित मत्‍स्‍यन क्षेत्रों, समुद्री दशा पूर्वानुमान तथा अन्य गतिविधियों की परामर्शिकाएं जारी की जा सकें जिन्हें ऋतुनिष्‍ठ और विस्तारित अवधि समय पैमानोंपर शुरू किया जा सके।

वायुमंडलीय प्रेक्षण नेटवर्क

आईएमडी की वायुमंडलीय प्रेक्षण नेटवर्क स्‍कीम एक सतत योजना है जिसमें मुख्य रूप से चल रहे कार्यक्रमों को एक एकीकृत तरीके से शामिल किया गया है जिसका उद्देश्य प्रेक्षण नेटवर्कों को बनाए रखना है। यह स्‍कीम पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय की व्‍यापक स्कीम वायुमंडलीय एवं जलवायु अनुसंधान- मॉडलिंग, प्रेक्षण प्रणालियां एवं सेवाएं (अक्रॉस) कार्यक्रम का एक भाग है।

मौसम विज्ञान संबंधी सेवाओं का समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। विभिन्न कालिक और स्थानिक पैमानों पर मौसम और जलवायु के सटीक पूर्वानुमान के लिएसार्वजनिक/निजी/सरकारी क्षेत्रों की मांग वैश्विक जलवायु में परिवर्तनशीलता के संभावित प्रभावों के कारण बढ़ रही है।

मौसम और जलवायु के बेहतर और विश्वसनीय पूर्वानुमान के लिए व्यापक डेटा समावेशन प्रणालियों द्वारा समर्थित उच्च विभेदन गतिशील मॉडलों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, विभिन्न प्लेटफॉर्म आधारित प्रेक्षण प्रणालियों के माध्यम से विभिन्न मौसम प्रणालियों की गहन निगरानी न केवल वर्तमान मौसम प्रणालियों के बारे में आवश्यक जानकारी प्रदान करती है, अपितु संख्यात्मक मॉडलों में उनका प्रभावी समावेश कुशल पूर्वानुमान सृजित करने के लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करता है।

वर्तमान प्रेक्षणों को जारी रखने और आने वाले समय के लिए डब्ल्यूएमओ प्रक्रियाओं और मानकों के अनुसार जारी रखने की आवश्यकता है। मौसम विज्ञान संबंधी सेवाओं के संचालन के लिए सतह, ऊपरीतन वायु और विमान के माध्यम से विभिन्न वायुमंडलीय मापदंडों का मापन एक प्रमुख आवश्यकता है। पिछले कुछ वर्षों में अनेक प्रमुख उन्नत प्रौद्योगिकी-आधारित उपकरण स्थापित किए गए हैं। इन उपकरणों का रखरखाव और संवर्द्धन आवश्यक है ताकि प्रौद्योगिकी उन्नयन का लाभ निरंतर आधार पर उपलब्ध हो सके। समाज को उच्च गुणवत्ता वाली मौसम विज्ञान संबंधी सेवाएं प्रदान करने के लिए त्वरित प्रगति प्राप्त करने के लिए आईएमडी को प्रेक्षणात्‍मक नेटवर्क के उन्नयन और उसे बनाए रखने की आवश्यकता है। मौसम विज्ञान की स्थितियों की निगरानी करने तथा मौसम पूर्वानुमान और अन्य उपयोगों के लिए मौसम संबंधी डेटा प्रदान करने के लिए आईएमडी पूरे देश में अनेक प्रकार के प्रेक्षण नेटवर्कों का संचालन और रखरखाव कर रहा है। एकीकृत प्रेक्षण प्रणाली को बनाए रखना इस योजना की प्रमुख रणनीति होगी।

उद्देश्य

  1. डॉपलर मौसम रडार (डीडब्ल्यूआर), स्वचालित वर्षामापी (एआरजी), स्वचालित मौसम प्रणालियों (एडब्ल्यूएस), ऊपरीतन वायु, सतह और पर्यावरणीय वेधशालाओं आदि सहित प्रेक्षणात्‍मक नेटवर्कोंको बनाए रखना और उनका विस्‍तार करना।
  2. उपग्रह मौसम विज्ञान अनुप्रयोगों के लिए बहु प्रसंस्करण, कंप्यूटिंग और संचार सुविधाओं को बनाए रखना और स्थापना।

मौसम और जलवायु सेवाएं

आईएमडी की स्कीम मौसम और जलवायु सेवाएं एक सतत योजना है जिसमें मुख्य रूप से एक एकीकृत तरीके से चल रहे कार्यक्रमों को शामिल किया गया है जिसका उद्देश्य पूरे देश में कुशल मौसम और जलवायु सेवाएं प्रदान करना है।

आईएमडी मौसम के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों कृषि, सिंचाई, नौवहन, विमानन, अपतट तेल अन्वेषण खोज आदिको सेवाएं प्रदान करता है। पिछले कुछ वर्षों में, उष्णकटिबंधीय चक्रवातों, प्रचंड गर्ज के साथ तूफानों, आंधी, भारी वर्षा और बर्फबारी की घटनाओं,शीतलहर और लू आदिसहित चरम मौसम घटनाओं की अत्याधुनिक निगरानी, पता लगाने और पूर्व चेतावनी के लिए विशेष सेवाएं भी बनाई गई हैं। मौसम विज्ञान संबंधी सेवाओं का समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। विभिन्न कालिक और स्थानिक पैमानों पर मौसम और जलवायु के सटीक पूर्वानुमान के लिए सार्वजनिक/निजी/सरकारी क्षेत्रों की मांग वैश्विक जलवायु में परिवर्तनशीलता के संभावित प्रभावों के कारण बढ़ रही है।मौसम विज्ञान सेवाएं अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) तथा क्षमता निर्माण में निरंतर निवेश पर निर्भर हैं ताकि अर्ध-संचालन वातावरण में केंद्रित प्रदर्शन मूल्यांकन के माध्यम से मौसम और जलवायु विज्ञान में प्रगति को सेवा में शामिल किया जा सके। वर्तमान सेवाओं में और सुधार के लिए अनुसंधान एवं विकास के परिणामों को पूरी तरह से प्रचालनरत उत्पादों, सेवाओं में प्रभावी ढंग से बदलने तथा निर्णय निर्माताओं और प्रयोक्‍ताओं के साथ संबंध विकसित करने के प्रभावी साधनों की आवश्यकता है। विशेष रूप से, निर्णय लेने के लिए उपयोगी उपकरणों, उत्पादों और सेवाओं के माध्यम से संचार के लिए सार्वजनिक मौसम सेवाओं का प्रभावी उपयोग समय की आवश्यकता है।

"मौसम और जलवायु सेवाएं" स्‍कीम के प्रमुख संघटक हैं:

  1. ग्रामीण कृषि मौसम सेवा (कृषि मौसम विज्ञान परामर्शिका सेवाएं)
  2. विमानन मौसम विज्ञान सेवाओं का विस्तार
  3. जलवायु सेवाएं
  4. प्रचालनरत मौसम विज्ञान में प्रशिक्षण
  5. क्षमता निर्माण

उद्देश्य

  1. अगले 3-5 दिनों के लिए कुशल, ब्लॉक स्तर के पूर्वानुमानों के लिए एक उन्नत मौसम पूर्वानुमान प्रणाली विकसित करना तथा कृषि, आपदा प्रबंधन, जल संसाधन, बिजली, पर्यटन और तीर्थयात्रा, स्मार्ट सिटीज, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र और परिवहन जैसे क्षेत्रों के लिए परामर्शिकाएं विकसित करना।
  2. कृषि मौसम परामर्शिका सेवाओं (एएएस) के विस्तार के लिए देश के सभी जिलों में जिला कृषि-मौसम इकाइयों (डीएएमयू) की स्थापना।
  3. संचार के विविध माध्यमोंके माध्यम से 94 मिलियन किसानों तक मौसम आधारित कृषि मौसम परामर्शिकाओं की पहुंच का विस्तार करना,फीडबैक का संग्रह और एएएस के प्रभाव का आकलन।
  4. देश के सभी नागरिक हवाई अड्डों के लिए स्वचालित विमानन मौसम प्रेक्षण प्रणाली और उन्नत पूर्वानुमान उपकरणों के साथ विमानन सुरक्षा के लिए एक अत्याधुनिक समर्थन प्रणाली विकसित करना।
  5. ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों पर नए एयरोड्रम एमईटी कार्यालयों की स्थापना तथा भारतीय वायु सेना, भारतीय सेना के हेलीकॉप्टर और निम्न-स्तरीय उड़ान संचालन का समर्थन करने के लिए हेलीपोर्ट्स, लैंडिंग ग्राउंड और अन्य रणनीतिक स्थानों पर तथा महत्वपूर्ण पर्यटन एवं तीर्थयात्रा स्‍थानों पर भीस्वचालित हेलीपोर्ट मौसम प्रेक्षण और संचार प्रणाली की स्थापना करना।
  6. राष्ट्रीय और क्षेत्रीय जलवायु सेवाएं प्रदान करने के लिए एकीकृत उन्नत जलवायु डेटा सेवाएं पोर्टल के साथ एक अत्याधुनिक जलवायु डेटा केंद्र स्थापित करना। जलवायु डेटा केंद्र जलवायु निगरानी, जलवायु पूर्वानुमान, जलवायु डेटा प्रबंधन और जलवायु अनुप्रयोग की मौजूदा प्रचालनात्‍मक गतिविधियों के उन्नयन के माध्यम से देश के लिए बेहतर और विशिष्ट जलवायु सेवाओं का एक व्यापक सेट प्रदान करेगा।
  7. दक्षिण एशिया क्षेत्र के लिए डब्‍ल्‍यूएमओद्वारा मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय जलवायु केंद्र (आरसीसी) के रूप में इस क्षेत्र को उपयुक्त जलवायु सेवाएं प्रदान करना।
  8. नए प्रवेशकों, करियर प्रगति पाठ्यक्रमों और विशेष विषयों में अल्पकालिक पाठ्यक्रम, देशों के कार्मिकों के प्रशिक्षण के लिए दीर्घावधि प्रारंभिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का बढा हुआ भार वहन करने के लिएप्रशिक्षण प्रतिष्ठान की क्षमता को बढ़ाने के लिएप्रशिक्षण के बुनियादी ढांचे और सुविधाओं को उन्नत करना।
  9. डब्‍ल्‍यूएमओ, अफ्रीका और एशिया के लिए क्षेत्रीय एकीकृत बहु-खतरा पूर्व चेतावनी प्रणाली (RIMES)/एशिया और प्रशांत के लिए आर्थिक और सामाजिक आयोग (ESCAP)/ग्‍लोबलफ्रेमवर्क फोर क्‍लाइमेट के बीच योगदान।
  10. दक्षिण एशिया आदि में सेवाएँ (GFCS)।
  11. कार्यशालाओं, संगोष्ठियों, प्रशिक्षणों, संगोष्ठियों,उपयोगकर्ता सम्मेलनों, विज्ञापन और प्रचार, आउटरीच गतिविधियों आदि का आयोजन करना।

पूर्वानुमान प्रणाली का उन्नयन

आईएमडी की पूर्वानुमान प्रणाली का उन्नयन स्‍कीम एक सतत योजना है जिसमें मुख्य रूप से एक एकीकृत तरीके से चल रहे कार्यक्रमों को शामिल किया गया है जिसका उद्देश्य देश भर में विभिन्‍न सेक्‍टरों में कुशल मौसम और जलवायु सेवाएं प्रदान करना है।यह स्‍कीम पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालयकी व्‍यापक स्‍कीम "वायुमंडल और जलवायु अनुसंधान-मॉडलिंग प्रेक्षण प्रणालियां और सेवाएं (अक्रॉस)" का एक भाग है।

पूर्वानुमान प्रणाली के उन्नयन की प्रस्तावित योजना का उद्देश्य मौसम पूर्वानुमानों की सटीकता में सुधार करना है ताकि इसे अंतरराष्ट्रीय मानकों के बराबर लाया जा सके जिससेअनेक क्षेत्रों जैसे सेना के अभियानों, वायु अभियान, कृषि, पर्यटन, पर्वतारोहण, विमानन, सड़क और संचार, बिजली उत्‍पादन, जल प्रबंधन, पर्यावरण अध्ययन, खेल और साहसिक कार्य, परिवहन, सरकारी प्राधिकरणों, गैर सरकारी संगठनों और सामान्‍य रूप से आम जनता को मदद मिलेगी।

उद्देश्य

  1. डेटा और उत्पाद संचरण के लिए संचार प्रणालियों का उन्नयन और रखरखाव।
  2. एक उन्नत परिचालन पूर्वानुमान प्रणाली का विकास, पूर्वानुमान और अन्य सेवाओं के लिए वितरण प्रणाली।
  3. वायुयान से प्राथमिक परीक्षण तथा अतिरिक्त प्रेक्षणों के माध्यम से चक्रवात, गर्ज के साथ तूफान और कोहरे के पूर्वानुमान में सुधार के लिए विशेष अभियान चलाना।
  4. पश्चिमी और मध्य हिमालय के लिए एकीकृत हिमालयी मौसम विज्ञान कार्यक्रम
  5. भारत में प्रेक्षण प्रणालियों से संबंधित क्षमता निर्माण, आउटरीच, नियोजन और विशिष्ट प्रक्रिया को बनाए रखना।

पोलारिमेट्रिक डॉप्लर मौसम रडार (डीडब्ल्यूआर) को चालू करना

आईएमडी वर्तमान में एक रडार नेटवर्क संचालित करता है जिसमें से अधिकांश में बहुत पुरानी तकनीक है और ये पारंपरिक एनालॉग प्रणालियों पर आधारित है, इसलिए ये वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी के डीडब्ल्यूआर के संबंध में लुप्‍त प्राय:हो रहे हैं। इसके अलावा, पारंपरिक रडार उत्पाद भिन्‍न-भिन्न मापदंडों पर डिजिटल डेटा की वर्तमान आवश्यकताओं के साथ बेमेल हैं जिन्हें सीधे ही मौसम पूर्वानुमान मॉडलों के इनपुटों के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

नेटवर्क में पर्याप्त संख्या में डीडब्ल्यूआर को शामिल करने से रडारों के मौसम संबंधी प्रेक्षणात्‍मक नेटवर्क में मौजूदा अंतराल को पाटने में मदद मिलेगी, जो विशेष रूप से मेसोस्केल पर प्रभावी और कुशल विश्लेषण तथा परिणामी पूर्वानुमान के लिए वांछनीय है। देशव्यापी मौसम रडार कवरेज की उपलब्धता और प्रस्तावित नेटवर्क के अतिव्यापी क्षेत्रों सहित इसका एकीकरण, चक्रवाती तूफानों, मानसून अवदाबों आदि के आने की स्थिति में पर्याप्त चेतावनी प्रदान करेगा। यह देश में कहीं भी मेसोस्केल संवहनी मौसम घटनाओं के संबंध मेंतत्‍काल पूर्वानुमान प्रयोजनों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी भी प्रदान करेगा। रडार प्रेक्षणसंवहनी मौसम की घटनाओं की गतिशीलता और सूक्ष्म भौतिकी पर अनुसंधान को भी प्रोत्साहित करेंगे। इन डीडब्ल्यूआर से प्राप्त डेटा से सुपर सेल तूफानों और साधारण तूफानों के बीच प्रमुख अंतरों को समझने में भी मदद मिलेगी। इसके अलावा, जल उल्‍काओं और बादलों में उनकी मात्रा, वर्षा करने वाले बादलों के वर्गीकरण आदि के बारे में अतिरिक्त जानकारी प्राप्त करने के लिए एक दोहरी पोलारिमैट्रिक सुविधा होना वांछनीय है।

देश में आधुनिक डीडब्ल्यूआर नेटवर्क के कई अतिव्यापी विन्यास बनाने के उद्देश्य से पोलारिमेट्रिक डीडब्ल्यूआरों को शामिल करने के प्रयासों को जारी रखते हुए, आईएमडी द्वारा कुल ग्यारह अतिरिक्‍त डीडब्ल्यूआर प्रस्तावित किए जा रहे हैं।

उद्देश्य

  1. विशेष रूप से देश में बड़े डेटा अंतराल वाले क्षेत्रों में रडार प्रेक्षणात्‍मक नेटवर्क के स्थानिक और कालिक घनत्व में सुधार करना।
  2. उपमहाद्वीप में मानसून से पूर्व और मानसून के बाद की ऋतुओं के दौरान उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की बेहतर जांच, निगरानी और ट्रैकिंग करना।
  3. उपमहाद्वीप में मानसून के अवदाबों और निम्‍न दाबों की बेहतर जांच, निगरानी और ट्रैकिंग करना।
  4. संवहनी गतिविधि/प्रणालियों की बेहतर समझ सहित उष्‍णाकटिबंधिय चक्रवातों और मानसून प्रणालियों से जुड़ी भौतिक प्रक्रियाओं की वर्तमान समझ में सुधार करना।

नए डीडब्ल्यूआरों के ये प्रस्तावित सेट बेहतर तत्‍काल पूर्वानुमान और मेसोस्केल पूर्वानुमान में अत्यधिक उपयोगी होंगे। एनडब्ल्यूपी और पारंपरिक, दोनों उपागमों का उपयोग करते हुए, चल रहेअन्य कार्यक्रमों के उद्देश्य भी वर्तमान प्रस्ताव के उद्देश्यों के अनुरूप हैं।