महासागर संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं और निकट भविष्य में इन संसाधनों पर मानव जाति की निर्भरता अनिवार्य होगी। हालांकि इन संसाधनों का इस्तेमाल धारणीय रूप से किया जाना चाहिए और इसके लिए भरोसेमंद और लागत प्रभावी प्रौद्योगिकियों को विकसित करना समय की आवश्यकता है। आत्मनिर्भर होने के लिए, इस तरह की तकनीकों को काफी हद तक स्वदेशी रुप से विकसित करना होगा, इनका परीक्षण करना और संचालित करना होगा। भारत के आसपास के समुद्री क्षेत्रों में, अनन्य आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) की वर्तमान सीमा 2.02 लाख वर्ग किमी है। संयुक्त राष्ट्र समुद्र विधि कन्वेंशन के तहत, ईईजेड के अतिरिक्त क्षेत्र के लिए भारत के दावे के साथ, भारत के 2.02 मिलियन वर्ग कि.मी के मूल ईईजेड क्षेत्र में लगभग 1 लाख वर्ग किमी और जोड़े जाने की आशा है। ईईजेड के इस बड़े क्षेत्र में सजीव और निर्जीव सहित संसाधनों की विविधता की एक विशाल संभावना है जो देश के आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक लाभ में वृद्धि करने में काफी हद तक योगदान कर सकती है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के तत्वावधान में राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा महासागर क्षेत्र में विभिन्न कार्यक्रमों को लागू किया जाता है जो सामरिक रूप से महत्वपूर्ण हैं और समाज के लिए फायदेमंद हैं।