Megamenu

Body

शताब्दियों से, तटरेखा अनेक प्रकार की गतिविधियों का केंद्र रही है जिसमें उद्योग, कृषि, मनोरंजन और मछली पालन शामिल है। तटरेखा राष्‍ट्रीय विरासत है और इसे भावी पीढि़यों के लिए स्‍थायी बनाए रखने के लिए तटीय संसाधनों का उचित प्रबंधन और रक्षा अनिवार्य है। समुद्र स्‍तर में अल्‍प और दीर्घ अवधि के बदलाव महासागर के तटों को कई तरीकों से प्रभावित करते हैं। लंबी अवधि में समुद्र तल का स्‍तर सीधी तटरेखा और साथ ही द्वीपों, बैरियर रिफ, नदी के मुहानों की प्रवेश प्रक्रिया, इनलेट, खाड़ी, तटीय लैगून आदि पर उल्‍लेखनीय प्रभाव डाल सकता है जो बाद में इन तटीय परिवेशों की पर्यावरण प्रक्रियाओं पर निरंतर प्रभाव डालते हैं।

वैश्विक पैमाने पर औसत समुद्र तल पिछली शताब्‍दी से लगातार बढ़ रहा है, यह महासागरों के ताप विस्‍तार और हिम नदों के पिघलने के कारण लगभग 1.8 मि‍. मी. / वर्ष की दर पर बढ़ रहा है। आईपीसीसी (2007) ने 21वीं शताब्‍दी के अंत तक समुद्र के औसत तल में 0.18 से 0.59 मीटर तक की वृद्धि का अनुमान लगाया है, जिसमें बर्फ की परत बहने के कारण अतिरिक्‍त 0.1 से 0.2 मीटर बढ़ने की संभावना है। इसके परिणामस्‍वरूप तटीय बैरियर के भूमि की ओर ट्रांसग्रेशन सहित, तट पर भू आकारिकी में बदलाव की प्रक्रियाएं होंगी।

क) उद्देश्‍य :

तटीय भू – आकृति विज्ञान और ज्‍यामिति पर समुद्र तल उठने के प्रभावों का अध्‍ययन। लक्षद्वीप के चयनित द्वीप समूह में कटाव / अभिवृद्धि के कारण विशेष रूप से स्‍थानीय स्‍तर तटरेखा बदलावों से कुछ संभव संरचनात्‍मक / गैर संरचनात्‍मक सुरक्षात्‍मक / अनुकूली विकल्‍पों के अन्‍वेषण के लिए‍ अध्‍ययन किया जाएगा।

ख) प्रतिभागी संस्‍थान :

  1. एकीकृत तटीय एवं समुद्री क्षेत्र प्रबंधन - परियोजना निदेशालय, चेन्‍नई
  2. भारतीय राष्‍ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र, हैदराबाद
  3. भारतीय उष्‍णकटिबंधी मौसम विज्ञान संस्‍थान, पुणे
  4. शैक्षणिक और अनुसंधान एवं विकास संस्‍थान

ग) कार्यान्‍वयन योजना :

  1. एक व्‍यापक अध्‍ययन के माध्‍यम से समुद्र तल बदलावों के कारण कारकों का आकलन।
    • समुद्री पानी के घनत्‍व (स्‍टेरिक), लवणता (हैलोस्‍टेरिक), तापमान (थर्मोस्‍टेरिक) के संबंध में हिंद महासागर बेसिन की मात्रा में बदलाव सहित संबद्ध और हिमनद / बर्फ पिघलने के कारण मात्रा में बदलाव।
    • भूमि (टेक्‍टोनिक) और डेल्‍टा घटाव के ऊर्ध्‍वाधर विस्‍थापन के कारण हिंद महासागर की ज्‍यामिति के आकार में बदलाव से संबद्ध।
  2. ज्‍वार के दोलनों पर आधारित तटीय परिवेशों का वर्गीकरण और सापेक्ष तरंग / ज्‍वार ऊर्जा, ट्रांसग्रेशन और प्रोग्रेडेशन सहित अस्‍थायी रूपरेखा में फ्लूवियल डिस्‍चार्ज।
  3. समुद्र तल में बदलावों तथा तटीय रेखा के प्रवास पर इसके प्रभाव का अध्‍ययन। कार्बन डेटिंग और बोर होल नमूनों के आधार पर आयु निर्धारण तथा तलछट जमाव के रुझानेां की पहचान – तलछट आपूर्ति और भूगर्भीय विरासत (पूर्ववर्ती भूविज्ञान) जैसे चतुर्धातुक समुद्र के स्तर से इतिहास का संक्षिप्‍त सिंहावलोकन।
  4. तट की रूपरेखा के मापनों से समुद्र स्‍तर में वृद्धि द्वारा क्षरण की घटना में तट के आयतन में होने वाले बदलावों का अध्‍ययन करना तथा तटों की हानि की सीमा का अनुमान लगाना – तलछट परिवहन और संबद्ध मॉडलों से खोए हुए तलछटों के भविष्‍य का आकलन करना।
  5. प्रस्‍तावित कार्यक्रम रिमोट सेंसिंग में कार्यरत वैज्ञानिकों के साथ भौतिक, रासायनिक, जैविक और भूगर्भीय वैज्ञानिकों से विशेषज्ञता की उपयोगिता पर आधारित एक समेकित मार्ग है और इसे आईसीएमएएम – पीडी द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा।

घ) वितरण योग्‍य

  1. क्षेत्र – विशेष के तटीय क्षेत्र परिसंचरण मॉडल और प्रभाव आकलन उपकरणों का विकास
  2. हिंद महासागर के ऊपर प्रकट समुद्र तल बढ़ने के लिए योगदान कारकों की मात्रा / आकलन और भारतीय समुद्र तट से संबद्ध प्रभावों का आकलन

ड) बजट आवश्‍यकता : 7 करोड़ रु.

(रू. करोड में)

बजट आवश्‍यकता
योजना का नाम 2012-13 2013-14 2014-15 2015-16 2016-17 कुल

समुद्र तल के उठने का प्रभाव

1.00 2.00 2.00 1.00 1.00 7.00

* 3.6.5 तटीय अनुसंधान की 185 करोड़ रु. की अनुमानित राशि का भाग है।