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अनुसंधान, शिक्षा, प्रशिक्षण और आउटरीच

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का प्रमुख अधिदेश यह है कि राष्ट्र को मौसम, जलवायु, महासागर, तटीय और प्राकृतिक आपदाएं, महासागरीय संसाधनों के सतत दोहन और ध्रुवीय क्षेत्रो के खोज के लिए यथासंभव सर्वश्रेष्ठ सेवाएं प्रदान करना है। इसलिए, महासागर, वायुमण्डल, हिमांकमण्डल, भूमण्डल और जैवमण्डल प्रक्रियाओं से संबंधित विभिन्न पहलुओं को समग्र रूप से संबोधित करना और नए विचारों को आत्मसात करके और पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के क्षेत्र में ज्ञान के अनुप्रयोग के माध्यम से ज्ञान को लगातार उन्नत करना आवश्यक है। इसे अकादमिक संस्थानों में अनुसंधान और विकास (R&D) के पोषण, और R&D को परिचालन उपयोग में लाने वाला तंत्र तैयार करने के माध्यम से प्रभावी ढंग से किया जा सकता है। इसके अलावा, एक कुशल वर्कफोर्स का विकास और पृथ्वी विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में नियमित प्रशिक्षण भी महत्वपूर्ण है। उपर्युक्त के अलावा, पृथ्वी प्रणाली विज्ञान से संबंधित विभिन्न वैज्ञानिक पहलुओं के संबंध में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा की जा रही विभिन्न गतिविधियों के बारे में उपयोगकर्ता समुदायों और आम जनता के बीच में समान रूप से जागरूकता पहुंचाना भी आवश्यक है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय उपर्युक्त गतिविधियों को पूरा करने के लिए REACHOUT का कार्यान्वयन करता है, जो निम्नलिखित छह उप-योजनाओं की एक सर्वसमावेशी योजना है।

  1. पृथ्वी प्रणाली विज्ञान में अनुसंधान और विकास (RDESS).
  2. आउटरीच और जागरूकता। ज्ञान संसाधन केंद्र नेटवर्क (केआरसीनेट)।
  3. BIMSTEC मौसम और जलवायु केंद्र (BCWC).
  4. अन्तरराष्ट्रीय प्रचालनात्मक समुद्रविज्ञान प्रशिक्षण केन्द्र (ITCOocean).
  5. पृथ्वी प्रणाली विज्ञान में कुशल वर्कफोर्स के विकास के लिए कार्यक्रम (DESK)।

उपर्युक्त उप-योजनाओं में से, पहली तीन उप-योजनाएं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के मुख्यालय द्वारा कार्यान्वित की जा रही हैं। शेष तीन योजनाएं अर्थात् BCWC, ITCOcean और DESK पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीनस्थ संस्थानों द्वारा कार्यान्वित की जा रही हैं, जिनके नाम हैं - राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र (NCMRWF), भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) और भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM)। इन उप-योजनाओं का उद्देश्य अनुसंधान (राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सहित) को बढ़ावा देना है; भारत और पड़ोसी देशों के प्रतिभागियों को वायुमंडलीय विज्ञान और समुद्र विज्ञान पर प्रशिक्षण प्रदान करना, और छात्रों, शिक्षाविदों और जनता के बीच पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूकता पैदा करना है।

उद्देश्य

  1. पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के विभिन्न घटकों के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विभिन्न अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों का समर्थन करने के लिए जो थीम और आवश्यकता-आधारित हैं, और जो पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के लिए स्थापित राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करेंगे।
  2. पृथ्वी विज्ञान से सम्बन्धित विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उन्नत ज्ञान के पारस्परिक हस्तांतरण, तथा और विकासशील देशों को सेवाएं प्रदान करने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ उपयोगी सहयोग विकसित करना।
  3. पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं एवं उपलब्धियों के बारे में जनता, छात्रों, शिक्षाविदों और उपयोगकर्ता समुदायों में जागरूकता पैदा करना।
  4. देश और विदेश के शैक्षणिक संस्थानों की सहायता से पृथ्वी विज्ञान में एक कुशल और प्रशिक्षित वर्कफोर्स तैयार करना।

 

1. पृथ्वी प्रणाली विज्ञान में अनुसंधान और विकास (RDESS)

RDESS पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न विश्वविद्यालयों और अकादमिक और अनुसंधान संगठनों के प्रस्तावों का समर्थन करता है। इसका उद्देश्य पृथ्वी प्रणाली (वायुमंडल, महासागर, ठोस पृथ्वी, जीवमंडल) की समझ में सुधार करना है, इससे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। इसके लिए बहु-विधात्मक और बहु-संस्थागत परियोजनाएं प्रोत्साहित और तैयार की जाती हैं। ये परियोजनाएं आवश्यकता आधारित और समयबद्ध हैं। इन परियोजनाओं से देश में पृथ्वी प्रणाली सेवाओं (मौसम, जलवायु और समुद्री सेवाओं) के समग्र वितरण पर लाभकारी प्रभाव पड़ना अपेक्षित है। RDESS परियोजनाएं निम्नलिखित गतिविधियों के अन्तर्गत समर्थित हैं।

  1. वायुमंडलीय विज्ञान, समुद्र विज्ञान, भूकंप विज्ञान, भूविज्ञान, जल विज्ञान और हिमांकमण्डल, और वायुमंडलीय रसायन विज्ञान में परियोजना मूल्यांकन और निगरानी समितियां (PAMCs)।
  2. देश के चुनिंदा विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में पहचाने गए विषयों के साथ पृथ्वी विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ (ESTC)।
  3. तकनीकी अनुसंधान बोर्ड (TRB)-पृथ्वी विज्ञान।
  4. समुद्र से संभावित औषधियों का विकास- मैरीन नेशनल प्रोडक्ट्स इंस्पायर्ड ड्रग लीड्स (MNPIDL): पूर्व ड्रग्स फ्रॉम सी (DFS)।
  5. जलवायु परिवर्तन से संबंधित पेलियोक्लाइमेट, समुद्र-स्तर में परिवर्तन, CO2 अनुक्रम, रीएक्टिव नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और कार्बन चक्र, कोरल रीफ और महासागरीय अम्लीकरण को समझना।
  6. अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी परियोजनाएं।
  7. रडार डेटा के इंटरप्रेटेशन और उपयोग के लिए एक अकादमिक संस्थान में उत्कृष्टता प्रशिक्षण एवं अनुसंधान केंद्र के समर्थन करने के लिए रडार मौसम विज्ञान संबंधी राष्ट्रीय कार्यक्रम। यह मेसोस्केल में मौसम के पूर्वानुमान में सुधार के लिए डेटा एसिमिलेशन विधियों को विकसित करने और हाई रिजोल्यूशन और नाउकास्टिंग के लिए रैपिड अपडेट मॉडलिंग को कॉन्फिगर करने में भी सहायता करेगा।

 

2. आउटरीच और जागरूकता कार्यक्रम

आउटरीच और जागरूकता कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य पृथ्वी विज्ञान का प्रचार करना और पृथ्वी, वायुमंडल और महासागर विज्ञान के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। यह जनता, विद्यार्थियों, शिक्षाविदों और उपयोगकर्ता समुदायों के बीच वैज्ञानिक सोच विकसित करने, उन्हें शिक्षित करने और उन तक उपयोगी नवीनतम जानकारी पहुंचाने के लिए तत्पर है। यह वैज्ञानिकों, अभियंताओं, सामाजिक वैज्ञानिकों और उपयोगकर्ता-समुदायों के लिए संगोष्ठियों, सम्मेलनों, कार्यशालाओं, गोष्ठियों, विचार-मंथन सत्रों, बैठकों, क्षेत्रीय कार्यक्रमों, प्रशिक्षण गतिविधियों और प्रदर्शनियों के माध्यम से सूचना और ज्ञान का आदान-प्रदान करने के लिए एक साझा मंच भी प्रदान करता है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत महत्वपूर्ण गतिविधियों की सूची नीचे दी गई है।

  1. समर्थन प्रदर्शनियां और मेले (राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय)।
  2. समर्थन सेमिनार, संगोष्ठी, सम्मेलन, कार्यशालाएं, प्रशिक्षण, आदि।
  3. हर वर्ष पृथ्वी दिवस और महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय दिवस और कार्यक्रम मनाया जाना।
  4. प्रिंट और ऑडियो-विजुअल मोड सहित मीडिया के माध्यम से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय गतिविधियों के बारे में जन जागरूकता पैदा करना।
  5. भारतीय राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान ओलंपियाड (INESO) और अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान ओलंपियाड (IESO) का आयोजन।
  6. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय स्थापना दिवस का आयोजन।

 

3. ज्ञान संसाधन केंद्र नेटवर्क (KRCNet)

KRCNet पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक अनूठी पहल है जिसका उद्देश्य पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और उसके संस्थानों के सभी ज्ञान और बौद्धिक संसाधनों को एक एकल, गतिशील, वेब पोर्टल पर एकीकृत करना है। भारत सरकार की डिजिटल इंडिया पहल के अंतर्गत, यह पोर्टल पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय परियोजनाओं से निकलने वाले ज्ञान उत्पादों और सेवाओं को एकत्रित करने, मिलान करने, कैटलॉग करने, स्टोर करने और पुनर्प्राप्त करने के लिए अपनी तरह की एक अनूठी डिजिटल ज्ञान प्रणाली है। यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के बौद्धिक जगत में वन-प्वॉइंट एंट्री है।

KRCNet पोर्टल को माननीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री, डॉ हर्षवर्धन द्वारा 27 जुलाई, 2020 को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के स्थापना दिवस पर लॉन्च किया गया था। यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में सूचना और ज्ञान प्रबंधन के लिए कुल गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली स्थापित करना चाहता है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय संस्थानों के पुस्तकालयों को डिजिटल ज्ञान संसाधन केन्द्र (KRCs) में अपग्रेड किया जा रहा है जो एक अंतरराष्ट्रीय वेब ढांचे से जुड़ा होगा। यह संभवत: सरकारी प्रणाली में एकमात्र ISO 9001:2015 प्रमाणित डिजिटल ज्ञान संसाधन पोर्टल है। KRCNet पोर्टलhttps://krcnet.moes.gov.in/ पर उपलब्ध है। यह NIC (राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र) सर्वर पर होस्ट किया जाता है और CERT-In (इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम) पैनल वाली एजेंसी द्वारा सुरक्षा ऑडिट किया जाता है। पोर्टल द्विभाषी (अंग्रेजी और हिंदी) है, उपयोगकर्ता के अनुकूल है, और प्रतिक्रिया और कीवर्ड-आधारित खोज प्रस्तुत करने में सक्षम बनाता है।

मुख्य विशेषताएं

KRCNet पोर्टल के सभी ज्ञान और बौद्धिक संसाधन दुनिया भर से जनता और MoES और इसके संस्थानों के उपयोगकर्ताओं के लिए 24X7 उपलब्ध हैं। KRCNet पोर्टल पर निम्नलिखित विशेषताएं जनता के लिए तैयार संदर्भ के लिए उपलब्ध हैं।

निम्नलिखित विशेषताएं विशेष रूप से KRCNet पोर्टल के माध्यम से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और इसके संस्थानों के वास्तविक सदस्यों के लिए उपलब्ध हैं।

  1. प्रकाशन: पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और उसके संस्थानों से नवीनतम प्रकाशन।
  2. डिजिटल रिपोजिटरी: MoES-KRCNet रिपोजिटरी में हाल के परिवर्धन की एक सूची।
  3. समाचार और कार्यक्रम: व्यापक जन पहुंच के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और इसके संस्थानों की वर्तमान और आगामी घटनाओं की जानकारी।
  4. मौसम: स्थानीय मौसम के बारे में भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) से प्राप्त किए गए उपयोगकर्ता-विशिष्ट अपडेट।
  5. समाचार में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय: पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और इसके संस्थानों की मीडिया उपस्थिति (समाचार) के सभी लिंक के लिए एक सिंगल विंडो एक्सेस।
  6. सूचना का चयनात्मक प्रसार (एसडीआई) सेवाएं/उपयोगी वेबसाइटें/पृथ्वी प्रणाली विज्ञान पर वेबसाइटें: वायुमंडलीय और मौसम विज्ञान अनुसंधान, महासागर विज्ञान और प्रौद्योगिकी, ध्रुवीय विज्ञान और भूविज्ञान से संबंधित पृथ्वी प्रणाली विज्ञान में डेटा और सेवाओं पर महत्वपूर्ण वेबसाइटों के लिंक, और डेटा, उपकरण और तकनीक, विश्वविद्यालय रैंकिंग, और व्यक्तिगत कल्याण खोलने के लिए।
  7. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय संस्थानों की वेबसाइटें: देश भर में फैले पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और इसके दस संस्थानों की वेबसाइटों के लिंक एक ही टैब के अंतर्गत उपलब्ध हैं।
  8. महत्वपूर्ण पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय घटनाओं की इमेज: पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और उसके संस्थानों से रोचक विजुअल्स।
  9. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सोशल मीडिया हैंडल: सार्वजनिक पहुंच बढ़ाने के लिए पोर्टल पर ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सोशल मीडिया हैंडल के लिंक उपलब्ध हैं। 
     

निम्नलिखित विशेषताएं विशेष रूप से KRCNet पोर्टल के माध्यम से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और इसके संस्थानों के वास्तविक सदस्यों के लिए उपलब्ध हैं।

  1. DERCON (डिजिटल अर्थ साइंसेज कंसोर्टियम) के अंतर्गत ई-संसाधनों की सदस्यता: पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय संस्थानों के वैज्ञानिकों को उनके संबंधित अनुसंधान क्षेत्रों में नवीनतम विकास के साथ रखने के लिए, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने 2010 में डिजिटल अर्थ साइंसेज कंसोर्टियम (DERCON) की स्थापना की। DERCON के हिस्से के रूप में, विभिन्न प्रकार की महंगी पत्रिकाओं की सदस्यता व्यक्तिगत पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय संस्थानों द्वारा संसाधनों की खरीद पर होने वाले खर्च को कम करती है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय सदस्य अपने व्यक्तिगत यूजर आईडी और पासवर्ड के माध्यम से दुनिया भर में हर जगह से चौबीसों घंटे संसाधनों का उपयोग करने में सक्षम हैं। KRCNet टीम उपयोगकर्ता जागरूकता और अनुभव बढ़ाने और प्रतिक्रिया एकत्र करने के लिए नियमित प्रशिक्षण आयोजित करती है। DERCON के अंतर्गत पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और इसके संस्थानों को निम्नलिखित संसाधन उपलब्ध कराए गए।
    क्र.सं. DERCON के अंतर्गत सब्सक्राइब किए गए ई-संसाधन का नाम यदि कोई टिप्पणी हो
    1 एल्जेवियर साइंस डायरेक्ट: 129 फुल-टेक्स्ट जर्नल्स।
        स्कोपस: साइटेशन मैनेजमेंट एवं इंडेक्सिंग डेटाबेस।
    2 नेचर नेचर (1987 से), नेचर क्लाइमेट चेंज (2011 से)। नेचर जियोसाइंस (2008 से)। साइंटिफिक अमेरिकन (2012 से) फुल-टेक्स्ट जर्नल्स।
    3 जे गेट सब्स्क्राइब किए हुए और ओपन एक्सेस जर्नल्स के मेटाडेटा का एकत्रीकरण (सार स्तर पर ~51,000 और फुल-टेक्स्ट पर ~25000)।
    4 क्लैरिवेट एनालिटिक्स वेब ऑफ साइंस: साइंस साइटेशन इंडेक्सिंग डेटाबेस (1982 से)।
    5 ईजीप्रॉक्सी रिमोट एक्सेस और ऑथेंटीकेशन टूल।
  2. ज्ञान संसाधन केंद्र (पुस्तकालय) सेवा: इसे KOHA नामक एक अंतरराष्ट्रीय ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर का उपयोग करके विकसित किया गया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय पुस्तकालय को अत्याधुनिक KRC में उन्नत और स्वचालित किया गया है। यह सिस्टम पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय उपयोगकर्ताओं को स्वचालित तरीके से शीर्षक खोजने, जारी करने, वापसी, होल्ड पर जगह, बकाया और जुर्माना, अनापत्ति प्रमाण पत्र, खरीद सिफारिशें स्वीकार करने आदि में सक्षम बनाता है। आगे बढ़ते हुए, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय संस्थानों के सभी पुस्तकालयों को KRCs में अपग्रेड किया जाएगा जिन्हें KRCNet पोर्टल पर जोड़ा और नेटवर्क किया जा सकता है।
  3. रिपॉजिटरी सेवाएं: इसे CRIS-D-space नामक एक ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर का उपयोग करके विकसित किया गया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय से डेटा 17 आइटम प्रकारों के अंतर्गत रखा जाता है, अर्थात् किताबें, पुस्तक अध्याय, वीडियोग्राफी, पुरस्कार, ब्रोशर, पोस्टर, सम्मेलन कार्यवाही, फ़ाइल नोट्स, मोनोग्राफ, समाचार क्लिपिंग, न्यूजलेटर, संसद प्रश्न, फोटोग्राफ, परियोजना प्रस्ताव, रिपोर्ट, शोध लेख, पूरक जानकारी, और थीसिस।
  4. अंटार्कटिक विज्ञान पर भारतीय राष्ट्रीय डेटाबेस (INDAS): भारतीय राष्ट्रीय अंटार्कटिक कार्यक्रम 1982 से अंटार्कटिका में वार्षिक अभियान भेज रहा है ताकि शोधकर्ताओं को ध्रुवीय विज्ञान में अत्याधुनिक अनुसंधान करने में सक्षम बनाया जा सके। INDAS KRCNet पोर्टल पर परियोजनाओं और भारतीय अंटार्कटिक अभियानों के कर्मियों के बारे में जानकारी का एक विस्तृत डेटाबेस अप-टू-डेट और वैलिडेटेड है।
  5. KRCNet पोर्टल के उपयोगकर्ता जागरूकता, उपयोग और अनुभव को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण और कार्यशालाएं।

 

4.BIMSTEC मौसम और जलवायु केंद्र (BCWC)

BIMSTEC (बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल) देश-बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड, तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय समूह के रूप में उभरे हैं। ये देश समाज को कुशल सेवाएं प्रदान करने के लिए समान मौसम की स्थिति और चुनौतियों को साझा करते हैं। वैज्ञानिक और तकनीकी संसाधनों को समेकित करने और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक संस्थागत तंत्र स्थापित करने के लिए, BCWC (BIMSTEC मौसम और जलवायु केंद्र) की स्थापना पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और BIMSTEC सदस्य देशों के बीच एक समझौता ज्ञापन के बाद की गई थी। एसोसिएशन पूर्वानुमान, पूर्व चेतावनी प्रणाली, क्षमता निर्माण और अधिक समन्वित तरीके से प्रेक्षण प्रणालियों को मजबूत करने जैसे क्षेत्रों के लिए है। BCWC को मौसम की भविष्यवाणी और जलवायु मॉडलिंग में अनुप्रयुक्त वैज्ञानिक अनुसंधान में उत्पादों और सेवाओं को वितरित करने के लिए अनिवार्य है।

BCWC की गतिविधियों में प्रशिक्षण, कार्यशालाएं, क्षमता निर्माण, BIMSTEC के लिए प्रेक्षण प्रणाली को बढ़ाना (प्रक्रिया को समझने और कौशल सुधार दोनों के लिए) शामिल हैं। BIMSTEC सहयोग के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा प्रतिबद्ध क्षेत्रीय नेतृत्व और सहयोग भूमिका को पूरा करने के लिए ये गतिविधियाँ आवश्यक हैं। BCWC की स्थापना राष्ट्रीय मध्य अवधि मौसम पूर्वानुमान केन्द्र (NCMRWF), नोयडा में की गई है।

उद्देश्य

  1. BIMSTEC क्षेत्र में मौसम की भविष्यवाणी और जलवायु मॉडलिंग में अनुप्रयुक्त वैज्ञानिक अनुसंधान में उत्पादों और सेवाओं को वितरित करें।
  2. वैज्ञानिकों के लिए अनुसंधान फेलोशिप के माध्यम से BIMSTEC क्षेत्र में प्रशिक्षण कार्यक्रमों, कार्यशाला, सम्मेलन, वैज्ञानिक कर्मियों के आदान-प्रदान के माध्यम से मौसम और जलवायु के क्षेत्र में क्षमता का निर्माण।
  3. BIMSTEC क्षेत्र के लिए प्रेक्षण प्रणाली में वृद्धि करना।

 

5. अन्तरराष्ट्रीय प्रचालनात्मक समुद्रविज्ञान प्रशिक्षण केन्द्र (ITCOocean)

ITCOocean एक अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण केंद्र है जिसकी स्थापना 2013 में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और UNESCO के बीच एक समझौता ज्ञापन के अंतर्गत भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केन्द्र (INCOIS), हैदराबाद में की गई थी। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर परिचालन समुद्र विज्ञान के लिए वैज्ञानिक आधार, प्रौद्योगिकी और सूचना प्रणाली के विकास और अनुकूलन को बढ़ावा देना है। यह इंडियन ओशन रिम (IOR) देशों और द्वीप क्षेत्र और अफ्रीका के लिए परिचालन समुद्र विज्ञान के क्षेत्र में क्षमता निर्माण का समर्थन करता है। ITCOocean के माध्यम से प्रशिक्षित कार्यबल मछुआरों, शिपिंग उद्योगों, बंदरगाहों और बंदरगाहों, तेल और प्राकृतिक गैस उद्योगों, आपदा प्रबंधन एजेंसियों, आदि सहित समुदाय द्वारा वास्तविक समय के उपयोग के लिए समुद्र विज्ञान में परिणामों और निष्कर्षों का अनुवाद करने में मदद करेगा। कुशल तरीके। यह समुद्र विज्ञान और पृथ्वी विज्ञान से संबंधित संस्थानों में शामिल करने के लिए मूल्यवान संपत्ति बनाने में भी योगदान देगा।

अंतर सरकारी समुद्र विज्ञान आयोग (IOC-UNESCO) ITCOocean के माध्यम से परिचालन समुद्र विज्ञान के क्षेत्र में क्षमता निर्माण गतिविधियों के लिए इंकॉइस का समर्थन करता है।

उद्देश्य

  1. युवा भारतीय वैज्ञानिकों और teean रिम देशों और अन्य विकासशील देशों को नियमित रूप से प्रायोजन पर परिचालन समुद्र विज्ञान में उन्नत प्रशिक्षण प्रदान करना, और उप-महाद्वीप में मुख्य कौशल के साथ युवा प्रशिक्षित कार्यबल का एक बड़ा पूल बनाने में सक्षम बनाना।
  2. स्व-स्थाने और उपग्रह प्लेटफार्मों का उपयोग करके महासागरों से डेटा उत्पादन पर प्रशिक्षण प्रदान करना, परिचालन केंद्रों को डेटा का प्रसारण, डेटा प्राप्त करना, वास्तविक समय में डेटा प्रसंस्करण, और मॉडल में डेटा का उपयोग करना और पूर्वानुमानों की पीढ़ी और अंतिम उपयोगकर्ताओं के लिए प्रसार करना।
  3. सभी उपलब्ध स्रोतों से अत्याधुनिक इंस्ट्रूमेंटेशन का उपयोग करते हुए प्रेक्षण समुद्र विज्ञान में शिपबोर्ड अनुभव और प्रशिक्षण प्रदान करें और विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधार को चौड़ा करने के लिए संकायों के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पूल के साथ इंटरैक्शन।
  4. प्राकृतिक संसाधनों की समझ और प्रबंधन में सुधार के लिए एकीकृत बहु-विषयक समुद्र विज्ञान में वैश्विक उत्कृष्टता को बढ़ावा देना।
  5. समुद्र के व्यवहार की भविष्यवाणी और पूर्वानुमान के लिए वैज्ञानिकों का समर्थन करना, और सुरक्षा, वाणिज्य और पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने में महासागर विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका, भुगतान के आधार पर उद्योगों सहित तकनीकी (S&T) व्यक्तियों और नीति निर्माताओं को संबोधित करना; ITCOocean.

लक्षित समूह

  1. परिचालन समुद्र विज्ञान के संभावित विद्यार्थी। भारत, हिंद महासागर रिम देशों, अफ्रीका और विकासशील देशों के लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी।
  2. मत्स्य पालन सहित समुद्री-संबंधित संस्थानों के कर्मचारी।
  3. नीति निर्माता जिन्हें समुद्र संबंधी डेटा प्रबंधन से परिचित होने की आवश्यकता है।
  4. समुद्र विज्ञान सेवाओं में शामिल सरकारी विभागों के कर्मचारी और शिक्षण सहित समुद्री या पर्यावरणीय गतिविधियों से जुड़े अन्य लोग।
  5. समुद्र की स्थिति के पूर्वानुमान, खतरे से संबंधित चेतावनियों, पर्यावरण संरक्षण, गैर सरकारी संगठनों, तटीय योजनाकारों, आपदा प्रबंधन गतिविधियों में लगे लोगों और तटीय और अपतटीय विकास गतिविधियों में लगे उद्योगों में शामिल संस्थान और व्यक्ति।
  6. परिचालन समुद्र विज्ञान केंद्रों के कर्मचारी जिन्हें परिचालन समुद्र विज्ञान उपकरणों और उत्पादों से परिचित होने और उनकी योग्यता बढ़ाने की आवश्यकता है।

पाठ्यक्रम

  1. शॉर्ट टर्म कोर्स: ITCOocean तीन महीने तक की अवधि के ये सर्टिफिकेट कोर्स प्रदान करता है। वे पेशेवरों और नीति निर्माताओं को प्रदान किए जाते हैं जिन्होंने अपने करियर के रूप में परिचालन समुद्र विज्ञान को चुना है। यह पेशेवरों को परिचालन समुद्र विज्ञान से संबंधित गतिविधियों का संचालन करने और संचालन तकनीकों और विधियों में अपने ज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त करने की अनुमति देगा। प्रशिक्षुओं की आवश्यकताओं के आधार पर विषयों का चयन किया जाता है।
  2. लॉन्ग टर्म कोर्स: ये चार सेमेस्टर में फैले दो साल तक के लिए होने की योजना है, जो एक विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर डिग्री या डिप्लोमा के लिए अग्रणी है।

 

6. पृथ्वी प्रणाली विज्ञान में कुशल वर्कफोर्स का विकास (DESK)

देश में प्रशिक्षित और समर्पित बहु-विषयक पृथ्वी प्रणाली और जलवायु अनुसंधान कार्यबल का एक बड़ा पूल बनाने के लिए DESK की शुरुआत 2018 में की गई थी। जलवायु मॉडलिंग पर विशेष जोर देने के साथ कार्यबल को भूमि, महासागर, वायुमंडल, जीवमंडल और क्रायोस्फीयर की व्यक्तिगत भौतिक प्रक्रियाओं पर गहन और व्यावहारिक विशेषज्ञता प्राप्त होगी। डेस्क का लक्ष्य एक केंद्रीकृत प्रशिक्षण सुविधा है जो संसाधनों, बुनियादी ढांचे और संकाय को पूल करेगी, जिससे अलग प्रशिक्षण कार्यक्रम होने की लागत कम हो जाएगी। यह भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे द्वारा समन्वित है।

उद्देश्य

  1. मानव संसाधन विकास के हिस्से के रूप में दो सेमेस्टर के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के जूनियर रिसर्च फेलोशिप (JRF) और सीनियर रिसर्च फेलोशिप (SRF) कार्यक्रम और DESK में उनके प्रारंभिक प्रशिक्षण को लागू करें।
  2. 7 से 10 दिनों की अवधि के स्कूलों और कार्यशालाओं का आयोजन करके पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के भीतर और बाहर एक कुशल वर्कफोर्स विकसित करने के लिए विशिष्ट या लक्षित क्षेत्रों पर पाठ्यक्रम (लघु और मध्यम अवधि) आयोजित करें।
  3. जलवायु और जलवायु परिवर्तन के विज्ञान के लिए अनुसंधान और शिक्षा समर्थन को मजबूत करना और देश में शिक्षा, अनुसंधान और परिचालन संगठन के बीच संबंध स्थापित करना।
  4. पृथ्वी विज्ञान से सम्बन्धित विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उन्नत ज्ञान के पारस्परिक हस्तांतरण, तथा और विकासशील देशों को सेवाएं प्रदान करने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ उपयोगी सहयोग विकसित करना।
  5. पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं एवं उपलब्धियों के बारे में जनता, छात्रों, शिक्षाविदों और उपयोगकर्ता समुदायों में जागरूकता पैदा करना।
  6. देश और विदेश के शैक्षणिक संस्थानों की सहायता से पृथ्वी विज्ञान में एक कुशल और प्रशिक्षित वर्कफोर्स तैयार करना।

Research, Education, Training and Outreach

The primary mandate of the MoES is to provide the nation with the best possible services for weather, climate, ocean, coastal and natural hazards, sustainable harnessing of ocean resources, and exploration of the Polar regions. Therefore, it is essential to holistically address various aspects related to ocean, atmosphere, cryosphere, geosphere and biosphere processes and continuously upgrade knowledge through assimilation of new ideas and application of knowledge in the field of earth system sciences. This can be effectively done through nurturing Research and Development (R&D) in academic institutions and formulating mechanisms to translate the R&D into operational use. Moreover, the development of a skilled workforce and regular training in different fields of Earth sciences are also vital. In addition to the above, it is also necessary to bring awareness to the user communities and general public alike about various activities being carried out by MoES in various scientific aspects related to Earth system science. To cater to the above-cited activities, MoES implements REACHOUT, which is an umbrella scheme of the following six sub-schemes.

  1. Research and Development in Earth System Science (RDESS).
  2. Outreach and awareness.
  3. Knowledge Resources Center Network (KRCNet).
  4. BIMSTEC Centre for Weather and Climate (BCWC).
  5. International Training Centre for Operational Oceanography (ITCOocean).
  6. Program for development of skilled workforce in Earth system sciences (DESK).

Of the sub-schemes mentioned above, the first three sub-schemes are implemented by the MoES headquarters. The remaining three schemes namely BCWC, ITCOcean and DESK are implemented by MoES institutes namely National Centre for Medium-Range Weather Forecasting (NCMRWF), Indian National Centre for Ocean Information Services (INCOIS) and Indian Institute of Tropical Meteorology (IITM). These sub-schemes aim to nurture research (including national and international collaboration); provide training on atmospheric science and oceanography to participants from India and neighbouring countries, and to generate awareness about various facets of Earth system science amongst students, academicians and the public.

Objectives

  1. To support various R&D activities in the thrust areas of different components of Earth system sciences that are theme and need-based, and that would help in attaining the National goals set up for MoES.
  2. Develop useful collaborations with international organisations for mutual transfer of advanced knowledge in science and technology in Earth sciences and to provide services to developing countries.
  3. Create awareness amongst the public, students, academicians and user communities about the various fields of Earth system science as well as on the achievements and services rendered by MoES.
  4. Develop a skilled and trained workforce in Earth sciences with the support of academic institutions in the country and abroad.

 

1. Research and Development in Earth System Sciences (RDESS)

RDESS supports proposals from various universities, and academic and research organisations in different fields of Earth system science. The aim is to improve the understanding of the earth system (atmosphere, ocean, solid Earth, biosphere) that would aid in attaining the national goals set up by MoES. For this, multidisciplinary and multi-institutional projects are encouraged and formulated. These projects are need-based and time-bound. The projects are expected to have an impact on the overall deliverables of Earth system services (weather, climate and marine services) in the country. RDESS projects are supported under the following activities.

  1. Project Appraisal and Monitoring Committees (PAMCs) in atmospheric sciences, oceanography, seismology, geoscience, hydrology and cryosphere, and atmospheric chemistry.
  2. Earth Science and Technology Cell (ESTC) with identified themes at select universities and academic institutes of the country.
  3. Technical Research Board (TRB)-Earth Sciences.
  4. Development of potential drugs from the sea—Marine National Products Inspired Drug Leads (MNPIDL): erstwhile Drugs from Sea (DFS).
  5. Understand palaeoclimate, sea-level changes, CO2 sequestration, reactive Nitrogen, Phosphorus and Carbon cycles, coral reefs, and ocean acidification concerning climate change.
  6. International collaborative projects.
  7. National Program on radar meteorology for supporting a training and research centre of excellence at an academic institution for interpretation and use of radar data. It will also help to develop data assimilation methods for improvement of weather predictions in mesoscale and to configure the high resolution and rapid update modelling for nowcasting.

 

2. Outreach and awareness programme

The primary objective of the outreach and awareness programme is to propagate earth science and enhance awareness about the Earth, atmosphere and ocean sciences. It looks forward to educating and informing, and to inculcate scientific temper among the public, students, academicians, and user communities. It also offers a common platform for scientists, engineers, social scientists, and user-communities to exchange information and knowledge through seminars, conferences, workshops, symposia, brainstorming sessions, meetings, field programmes, training activities and exhibitions. Significant activities under this programme are listed below.

  1. Support exhibitions and fairs (national and international).
  2. Support seminars, symposia, conferences, workshops, training, etc.
  3. Celebrate Earth Day and important international days and events every year.
  4. Generate public awareness of MoES activities through media, including print and audio-visual modes.
  5. Conduct Indian National Earth Science Olympiad (INESO) and International Earth Science Olympiad (IESO).
  6. Celebrate MoES foundation day.

 

3. Knowledge Resource Center Network (KRCNet)

KRCNet is a unique initiative of the MoES which aims to integrate all knowledge and intellectual resources of MoES and its institutes on a single, dynamic, web portal. Under the Digital India Initiative of the Government of India, the portal is a one-of-its-kind digital knowledge system to collect, collate, catalogue, store and retrieve the knowledge products and services emanating from MoES projects. It is one-point entry to the intellectual world of the MoES.

The KRCNet portal was launched by the Hon'ble Minister of Earth Sciences, Dr Harsh Vardhan on the MoES foundation day on July 27, 2020. It seeks to establish a total quality management system for information and knowledge management in MoES. The libraries of the MoES institutes are being upgraded into digital Knowledge Resource Centers (KRCs) which will be connected by an international web framework. It is possibly the only ISO 9001:2015 certified digital knowledge resources portal in the government system. The KRCNet portal is accessible at https://krcnet.moes.gov.in/. It is hosted on the NIC (National Informatics Center) server and security audited by a CERT-In (Indian Computer Emergency Response Team) empanelled agency. The portal is bilingual (English and Hindi), user friendly, and enables submission of feedback and keyword-based search.

Salient features

All knowledge and intellectual resources of KRCNet portal are available 24X7 from around the globe to the public and users from MoES and its institutes. The following features on the KRCNet portal are available to the public for ready reference.

The following features are exclusively available to the bonafide members of MoES and its institutes through the KRCNet portal.

  1. Publications: Latest publications from MoES and its institutes.
  2. Digital Repository: A list of recent additions to MoES-KRCNet repository.
  3. News and Events: Information of current and upcoming events of MoES and its institutes for wider public reach.
  4. Weather: User-specific updates on local weather sourced from India Meteorological Department (IMD).
  5. MoES in the News: A single window access to all links to the media presence (news) of MoES and its institutes.
  6. Selective Dissemination of Information (SDI) Services/useful websites/websites on Earth system science: Links to important websites on data and services in Earth system science related to atmospheric and meteorology research, ocean science and technology, polar science, and geosciences, and to open data, tools and techniques, university rankings, and personal wellbeing.
  7. Websites of MoES institutes: Links to websites of MoES and its ten institutes spread across the country are available under a single tab.
  8. Images of important MoES events: Interesting visuals from MoES and its institutes.
  9. Social media handles of MoES: Links to social media handles of MoES on Twitter, Facebook, Instagram, and YouTube are available on the portal for enhancing public outreach. 
     

The following features are exclusively available to the bonafide members of MoES and its institutes through the KRCNet portal.

  1. Subscription to e-resources under DERCON (Digital Earth Sciences Consortium): To keep scientists of MoES institutes abreast with the latest developments in their respective research areas, MoES established the Digital Earth Sciences Consortium (DERCON) in 2010. As part of DERCON, subscription to a variety of costly journals reduces the expenditure incurred by individual MoES institutes on their procurement of resources. MoES members are able to access the resources round the clock from everywhere around the globe through their individual user IDs and password. The KRCNet team conducts routine training to enhance user awareness and experience and to collect feedback. The following resources were made available to MoES and its institutes under DERCON.
    S No Name of the subscribed e-resource under DERCON Remarks, if any
    1 Elsevier Science Direct: 129 full-text journals.
        SCOPUS: citation management and indexing database.
    2 Nature Nature (since 1987), Nature Climate Change (since 2011). Nature Geoscience (since 2008). 
    Scientific American (since 2012) full-text journals.
    3 J Gate Aggregation of metadata of subscribed and open access journals (~51,000 at the abstract level and ~25,000 at the full-text).
    4 Clarivate Analytics Web of Science:  Science citation indexing database (since 1982).
    5 EZproxy Remote access and authentication tool.
  2. Knowledge Resource Center (Library) service: It is developed using KOHA, an international open-source software. Library of MoES has been upgraded and automated to a state-of-the-art KRC. The system enables MoES users to search titles, issue, return, place on hold, generate dues and fines, no objection certificate, accept purchase recommendations, etc. in an automated manner. Going forward, all libraries of MoES institutes will be upgraded to KRCs that can be linked and networked on the KRCNet portal.
  3. Repository services: It is developed using CRIS-D-space, which is open-source software. Data from MoES and its is maintained under 17 item types namely, books, book chapters, videography, awards, brochures poster, conference proceeding, file notes, monographs, news clipping, newsletter, parliament questions, photograph, project proposal, report, research article, supplementary information, and thesis.
  4. Indian National Database on Antarctic Science (INDAS): Indian National Antarctic program has been sending annual expeditions to Antarctica since 1982 to enable researchers to pursue cutting edge research in polar sciences. INDAS an elaborate database of information on projects and personnel of Indian Antarctic expeditions on the KRCNet portal is up-to-date and validated.
  5. Training and workshops to enhance user awareness, usage, and experience of the KRCNet portal.

 

4. BIMSTEC Centre for Weather and Climate (BCWC)

BIMSTEC (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) countries—Bangladesh, Bhutan, India, Myanmar, Nepal, Sri Lanka, and Thailand, have emerged as an important regional group for technical and economic cooperation. These countries share similar weather conditions and challenges for rendering skilfull services to society. To consolidate scientific and technical resources, and to establish an institutional mechanism to boost regional cooperation, BCWC (BIMSTEC Centre for Weather and Climate) was set up following a Memorandum of Association between MoES and BIMSTEC member countries. The association is for areas such as forecasts, early warning systems, capacity building and strengthening of observing systems in a more coordinated manner. BCWC is mandated to deliver products and services in applied scientific research in weather prediction and climate modelling.

BCWC activities include conducting training, workshops, capacity building, enhancing the observing system for BIMSTEC (for both process understanding and forecast skill improvement). These activities are essential to meet the regional leadership and cooperation role committed by the Government of India under BIMSTEC Cooperation. BCWC is established at the National Centre for Medium-Range Weather Forecast (NCMRWF), Noida.

Objectives

  1. Deliver products and services in applied scientific research in weather prediction and climate modelling in the BIMSTEC region.
  2. Build capacity in the field of weather and climate through training programs, workshop, conference, scientific personnel exchange in the BIMSTEC region through research fellowships for the scientists.
  3. Enhance observing systems for the BIMSTEC region.

 

5. International Training Centre for Operational Oceanography (ITCOocean)

ITCOocean is an international training centre which was set-up in 2013 at the Indian National Center for Ocean Information Services (INCOIS), Hyderabad under a Memorandum of Association between MoES and UNESCO. It aims to promote the development and optimization of scientific base, technology and information system for operational oceanography at national, regional and global scales. It supports capacity building in the field of operational oceanography for the Indian Ocean Rim (IOR) countries and islands region, and Africa. The trained workforce through ITCOocean would help in translating the results and findings in ocean science to real-time use by the community, including fisherfolk, shipping industries, ports and harbours, oil and natural gas industries, disaster management agencies, etc., in an efficient manner. It will also contribute to forming valuable assets for induction in oceanography- and earth science- related institutions.

The Intergovernmental Oceanographic Commission (IOC-UNESCO) supports INCOIS for capacity building activities in the field of operational oceanography through ITCOocean.

Objectives

  1. Provide advanced training in operational oceanography to young Indian scientists and technical (S&T) persons and policymakers, including industries on payment basis; Indian Ocean Rim countries and other developing nations regularly on sponsorship, and to enable creating a large pool of young trained workforce with core skills in the sub-continent.
  2. Provide training on data generation from oceans using in situ and satellite platforms, the transmission of data to operational centre, data reception, data processing in real-time, and using data in models and generation of forecasts and dissemination to end-users with a high lead time.
  3. Provide shipboard experience and training in observational oceanography using state-of-the-art instrumentation from all available sources and interaction with the national and international pool of faculties to widen the S&T base.
  4. Promote global excellence in integrated multidisciplinary oceanography to improve understanding and management of natural resources.
  5. Support scientists towards preparedness for nowcasting and forecasting ocean behaviour, and to address the role of ocean science and technology in delivering information critical to safety, commerce and environmental protection.

Target groups

  1. Prospective students of operational oceanography. Those from India, Indian Ocean Rim countries, Africa and developing nations would be given priority.
  2. Staff from maritime-related institutions, including fisheries.
  3. Policymakers who require familiarization with oceanographic data management.
  4. Staff from government departments involved in oceanographic services and others associated with maritime or environmental activities, including teaching.
  5. Institutions and persons involved in ocean state forecasts, hazard related warnings, environmental protection, NGOs, coastal planners, those engaged in disaster management activities and industries engaged in coastal and offshore developmental activities.
  6. Staff of operational oceanographic centres who need familiarization with operational oceanographic tools and products, and to enhance their qualification.

Courses

  1. Short-term courses: ITCOocean offers these certificate courses of duration up to three months. They are provided to professionals and policymakers who have chosen operational oceanography as their career. It would allow professionals to acquire essential training to conduct activities related to operational oceanography and to advance their knowledge in operative techniques and methods. The topics are chosen based on the requirements of trainees.
  2. Long-term courses: These are planned to be for up to two years spread over four semesters leading to a university Post Graduate Degree or Diploma.

 

6. Development of skilled manpower in Earth system sciences (DESK)

DESK was initiated in 2018 to create a large pool of trained and dedicated multidisciplinary earth system and climate research workforce in the country. The workforce would have in-depth and hands-on expertise on individual physical processes of land, ocean, atmosphere, biosphere and cryosphere, with a particular emphasis on climate modelling. DESK is aimed to be a centralized training facility which will pool resources, infrastructure and faculty, thereby reducing the cost than having separate training programs. It is coordinated by the Indian Institute of Tropical Meteorology (IITM), Pune.

Objectives

  1. Implement the Junior Research Fellowship (JRF) and Senior Research Fellowship (SRF) program of MoES and their ab initio training in DESK for two semesters as part of human resource development.
  2. Organize courses (short- and medium-term) on specific or targeted areas to develop a skilled workforce within and outside of MoES by conducting schools and workshops of 7 to 10 days duration.
  3. Strengthen research and education support for science of the climate and climate change and to establish linkages amongst education, research and operational organization in the country.